भारत में कभी भी आ सकता है विनाशकारी भूकंप, वैज्ञानिकों ने दी भूकंप को लेकर कड़ी चेतावनी
विशेषज्ञों की मानें तो खतरा सिर्फ म्यांमार या जापान तक सीमित नहीं है – भारत भी एक गंभीर भूकंपीय संकट की कगार पर खड़ा है।

इस साल 28 मार्च को म्यांमार में आए 7.7 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप में अब तक करीब 2,719 लोगों की जान जा चुकी है। इसकी ताकत इतनी जबरदस्त थी कि वैज्ञानिकों के अनुसार इसमें निकली ऊर्जा 300 से अधिक परमाणु बमों के बराबर थी। इस आपदा का असर म्यांमार के पड़ोसी देश थाईलैंड तक पहुंचा, जहां 17 लोगों की मौत हो गई। भूकंप से इनवा ब्रिज ढह गया और कई इमारतें मलबे में तब्दील हो गईं। यह भूकंप सागाइंग फॉल्ट लाइन पर आए स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट के कारण आया, जो धरती की अंदरूनी हलचलों का खतरनाक संकेत है। इसके बाद जापान ने भी बड़े भूकंप की चेतावनी जारी की है।
भारत भी है खतरे के घेरे में
विशेषज्ञों की मानें तो खतरा सिर्फ म्यांमार या जापान तक सीमित नहीं है, भारत भी एक गंभीर भूकंपीय संकट की कगार पर खड़ा है। वैज्ञानिक वर्षों से चेतावनी दे रहे हैं कि देश में 8 या उससे अधिक तीव्रता का भूकंप आ सकता है, खासकर उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में। अमेरिकी भूभौतिकीविद् रोजर बिलहम का कहना है कि भारत हर सदी में तिब्बत की ओर 2 मीटर खिसकता है, लेकिन इसका उत्तरी भाग रुकता है और फिर एक बार में ही भारी झटका देता है – यही प्रक्रिया भीषण भूकंपों का कारण बनती है।
देश का आधे से ज्यादा हिस्सा भूकंप के प्रति संवेदनशील
करीब 59% भारतीय क्षेत्र भूकंप के जोखिम में आता है। हिमाचल, उत्तराखंड, बिहार और पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे महानगर भी खतरे की रेखा पर बने हुए हैं। खासकर दिल्ली, जो भूकंपीय क्षेत्र-IV में आती है, वहां बड़े भूकंप से भारी जानमाल की हानि हो सकती है।
भविष्य के लिए अब भी तैयार नहीं है भारत
भारत में इमारतें अक्सर भूकंप के लिहाज से तैयार नहीं होतीं। भूकंप-रोधी निर्माण नियमों का पालन बहुत कम होता है। 2001 के भुज भूकंप और 2015 के नेपाल भूकंप से हुई तबाही के बावजूद हमने बहुत कुछ नहीं सीखा। इसके विपरीत, जापान और चिली जैसे देश पहले से ही तैयार रहते हैं – सख्त निर्माण कोड्स, आपातकालीन प्रशिक्षण और तेज़ प्रतिक्रिया प्रणाली के जरिए।
जरूरत है सख्ती और तैयारी की-
भारत में भूकंप-रोधी मानकों की अनदेखी करने वाले बिल्डरों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। पुरानी और कमजोर इमारतों को फिर से मजबूत करना बेहद जरूरी है। शहरों में खुली जगहें निर्धारित की जानी चाहिए जहां लोग आपातकालीन स्थिति में सुरक्षित पहुंच सकें।
भविष्य का बेहद विनाशकारी हो सकता है भूकंप-
वैज्ञानिकों का मानना है कि अगला बड़ा हिमालयी भूकंप समुद्र में नहीं, ज़मीन पर आएगा – जिससे इसका प्रभाव और भी जानलेवा होगा। रोजर बिलहम ने चेताया है कि ऐसा कोई भूकंप आने पर 30 करोड़ से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं।
अब नहीं तो कभी नहीं-
म्यांमार की त्रासदी भारत के लिए चेतावनी है। हमारे पास वैज्ञानिक ज्ञान और तकनीक है, बस ज़रूरत है उसे लागू करने की। भूकंप कब आएगा यह कोई नहीं जानता, लेकिन उससे निपटने की तैयारी अभी से जरूरी है। चाहे स्कूल हों, ऑफिस या घर – सभी को सतर्क रहकर आपदा से बचाव की योजना तैयार करनी चाहिए। यही एकमात्र रास्ता है जान-माल की भारी क्षति से बचने का।