शहर की दो महिला पॉवर लिफ्टर के लिए ऐज इज़ ऑनली नंबर, इस उम्र में भी खेल को लेकर जुनून कम नहीं, किशोरियों के लिए बनी मिसाल
ऐज इज़ ओनली नंबर इस सेन्टेंस को हमने कई बार पढ़ा और सुना होगा लेकिन इस सेंनटेंस को हकीकत में बदलने वाली महिलाओं से हम आप आपको मिला रहे हैं। जिन्होंने वाकई में यह साबित कर दिया कि उम्र सिर्फ एक नंबर होती है।
जबलपुर डेस्क, ऐज इज़ ओनली नंबर इस सेन्टेंस को हमने कई बार पढ़ा और सुना होगा लेकिन इस सेंनटेंस को हकीकत में बदलने वाली महिलाओं से हम आप आपको मिला रहे हैं। जिन्होंने वाकई में यह साबित कर दिया कि उम्र सिर्फ एक नंबर होती है। अगर आपमे कुछ करने का जोश और जुनून है तो बढ़ती उम्र आपके पैरों की बेढीया नहीं बल्कि आपके पंख भी बन जाती है। पॉवर लिफ्टर चित्रा और शिखा यह ऐसी महिलाएं जो समाज के लिए व उन महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं जो कुछ न कर पाने का दोष अपनी उम्र को देती हैं।
जहां तक हिम्मत ले जाएगी वहां तक जाने की इच्छा -
चित्रा नायडू उम्र 48 वर्ष बताती है चार साल पहले उन्होंने जब जिम में अपना पहला कदम रखा तब वह यह नहीं जानती थीं कि कभी वह पॉवर लिफ्टर खेल में अपनी पहचान बना पाएंगी। आज उन्हें चार साल ही हुए हैं इस खेल से जुड़े और इन चार सालों में उन्होंने तीन नेशनल खेले हैं जिसमें दो बार पोजिशन लग चुकी है। बस कुछ ही दिन में वह चौथा नेशनल खेलने जाने की तैयारी कर रहीं है। वहीं आगे मेहनत कर इंटरनेशनल तक जाने की जिद है। चित्रा ने बताया कि उनके दो बच्चे है बेटा 23 वर्ष और बेटी 19 वर्ष की है। उनका कहना है जहां तक उनकी हिम्मत ले जाएंगी वह वहां तक जाएंगी।
पति बने मेरी ताकत -
शिखा गरेवाल उम्र 41 वर्ष ने बताया कि पहली बार जब पॉवर लिफ्टिंग शुरु किया करना तो सबसे पहले मेरे पति ने ही मेरा हौसला बढ़ाया और मुझे इस फील्ड में जाने के लिए प्रोत्साहित किया। शिखा ने पहले डिस्ट्रिक लेवल, स्टेट लेवल और फिर नेशनल में स्वर्ण पदक जीतने का सिलसिला शुरु हो गया। आज मेरी इस सफलता से सभी खुश है। इतना ही नहीं शिखा हॉगकॉग में होने वाली अंतरराष्ट्रीय पॉवर लिफ्टिंग के लिए भी चयनित हो चुकी थी। किसी कारणवश वह वहां खेलने नहीं जा पाई। वहीं शिखा 2024 की मप्र की बेस्ट लिफ्टर भी बन चुकी है।
सीखने के लिए उम्र का बंधन नहीं
शिखा और चित्रा का कहना है कि सीखने की और अपने लिए कुछ करने की कोई उम्र नहीं होती। न ही महिलाओं को इस उम्र के बंधन में बंध कर घर बैठना चाहिए। इनका कहना है हमने उम्र रहते अपना घर संभाला, बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और इस काबिल बनाया कि वह अपने पैरों पर खड़े हो सके। अब बारी थी इस दौड़ती भागती जिंदगी से थोडा सा समय अपने लिए निकालने की। यह समय हमें मिला नहीं बल्कि हमने निकाला और छोटे छोटे बच्चों से सीखा कि जब बच्चे कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं। बस यहां से हमारे जीवन की दिशा बदल गई और मौका मिलते ही हमने समाज को कुछ कर दिखाया। इसके लिए हमारे कोच आनंद पटेल ने हमारा बहुत साथ दिया।