अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा फिलहाल रहेगा बरकरार रहेगा

सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए गए अपने पहले के फैसले में बदलाव किया है।

Nov 8, 2024 - 15:41
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा फिलहाल रहेगा बरकरार रहेगा
Aligarh Muslim University's minority status will remain intact for now

सुप्रीम कोर्ट की 07 जजों की बेंच का फरमान

अलीगढ़। 

सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए गए अपने पहले के फैसले में बदलाव किया है। 1967 में दिए गए अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य मामले के फैसले को पलटते हुए कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई संस्थान कानूनी रूप से स्थापित है, तो वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है। इस मामले में अंतिम फैसला अब नियमित पीठ द्वारा लिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह आदेश दिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना-

साल 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस पर सुनवाई करते हुए 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे सात जजों की पीठ के पास भेज दिया था। इस दौरान यह सवाल उठाया गया था कि क्या एक ऐसा विश्वविद्यालय, जिसका प्रशासन सरकार द्वारा किया जाता है, अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है। एक फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था, और अब अपने ताजे आदेश में उसने स्पष्ट किया है कि कानून द्वारा बनाए गए संस्थान को भी अल्पसंख्यक दर्जा मिल सकता है। हालांकि, अंतिम निर्णय के लिए यह मामला अब नियमित पीठ के पास भेज दिया गया है। 1967 में, अजीज बाशा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा खारिज कर दिया था, लेकिन 1981 में सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा फिर से दे दिया था। 1967 के फैसले में कोर्ट ने कहा था कि कानूनी रूप से स्थापित संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा नहीं कर सकते। 

7 जजेस की बेंच में ये रहे शामिल-

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पीठ ने एएमयू के पक्ष में निर्णय दिया, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने भी एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को बनाए रखने का समर्थन किया। हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने इसके खिलाफ तर्क दिए।