बांध बनाओ...लेकिन पहले बताओ...कहां जाएंगे 17 गांव के लोग..?

सत्ता बदलते ही भाजपा सरकार और जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने कमीशनबाजी के लिए भ्रष्टाचार को बढ़ा दिया है।

Nov 14, 2024 - 14:08
 4
बांध बनाओ...लेकिन पहले बताओ...कहां जाएंगे 17 गांव के लोग..?
Build the dam...but first tell me...where will the people of 17 villages go?

बड़ादेव माइक्रो सिंचाई परियोजना की निर्माण प्रक्रिया पर पूर्व विधायक संजय यादव ने उठाई आपत्ति

द त्रिकाल डेस्क, जबलपुर।  

सत्ता बदलते ही भाजपा सरकार और जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने कमीशनबाजी के लिए भ्रष्टाचार को बढ़ा दिया है। कांग्रेस नेताओं ने जबलपुर-सिवनी सीमा पर प्रस्तावित बड़ा देव संयुक्त माइक्रो सिंचाई परियोजना को लेकर राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाये हैं। कांग्रेस नेता और बरगी विधानसभा के पूर्व विधायक संजय यादव ने कहा कि उनकी पहल पर 568 करोड़ की लागत से इस परियोजना को नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के माध्यम से पूरा किया जाना था, लेकिन अब इसे दोगुनी राशि में करीब 890 करोड़ रुपए की लागत में जल संसाधन विभाग के माध्यम से पूरा किया जा रहा। 

कांग्रेस के पूर्व विधायक संजय यादव ने बताया कि इस परियोजना के तहत दो नए बांध बनाए जाएंगे, जिससे लगभग 31,500 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होगी। हालांकि, इस परियोजना में 17 गांवों की सैकड़ों हेक्टेयर वनभूमि डूब क्षेत्र में आएगी, जिससे सैकड़ों आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ेगा। यादव का आरोप है कि सरकार ने इस परियोजना के लिए पंचायतों से बिना कोई प्रस्ताव लिए ही निविदाएं जारी कर दी हैं।

दोगुनी राशि में दिए टेंडर-

पत्रवार्ता के दौरान पूर्व विधायक संजय यादव ने बताया कि परियोजना में 890 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इसे उन्होंने विधायक रहते हुए बनाई थी, जिसे नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण के माध्यम से पूरा किया जाना था। उस समय इस परियोजना की लागत मात्र 568 करोड़ रुपए थी। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने लगभग 28,000 हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने के लिए लिफ्ट इरिगेशन की योजना बनाकर डीपीआर तैयार कर ली थी, लेकिन कमलनाथ सरकार के जाने के बाद यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया और अब उसी प्रोजेक्ट को जल संसाधन विभाग दोगुनी राशि में बना रहा है।

पंचायत से प्रस्ताव पास नहीं-

जबलपुर-सिवनी के बीच स्थित जंगल में बन रहे बांध के आसपास कई गांव हैं। आरोप है कि पंचायत से बिना प्रस्ताव के ही सरकार ने भूमि का चयन कर लिया और बांध के लिए निविदा भी जारी कर दी। आरोपित है कि वर्तमान में यह योजना मध्य प्रदेश जल संसाधन विभाग के माध्यम से पूरी होगी, और जो परियोजना 568 करोड़ रुपए में पूरी हो सकती थी, अब उसमें 890 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं और आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है।