चाइल्ड पोर्नोग्राफी बड़ा अपराध:सुप्रीम कोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी कंटेंट से जुड़ा एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि इस तरह का कंटेंट देखना, प्रकाशित करना या डाउनलोड करना सभी अपराध हैं।

Sep 23, 2024 - 15:43
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चाइल्ड पोर्नोग्राफी बड़ा अपराध:सुप्रीम कोर्ट 
Child pornography is a major crime: Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी कंटेंट से जुड़ा एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि इस तरह का कंटेंट देखना, प्रकाशित करना या डाउनलोड करना सभी अपराध हैं। यह फैसला मद्रास हाई कोर्ट के उस विवादास्पद फैसले को रद्द करता है, जिसमें इसे अपराध के दायरे में नहीं रखा गया था।

ममले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र के बेंच ने की। कोर्ट ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि वह चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द के स्थान पर बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री का उपयोग करे। इससे यह सुनिश्चित होगा कि बच्चों के खिलाफ हो रहे यौन अपराधों की गंभीरता को सही ढंग से दर्शाया जा सके।

मद्रास हाईकोर्ट का विवादित फैसला-

मद्रास हाईकोर्ट द्वारा पहले कहा गया था कि बच्चों से जुड़े पोर्नोग्राफी कंटेंट को केवल डाउनलोड या देखने पर पॉक्सो अधिनियम या सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। इस फैसले के तहत, हाईकोर्ट द्वारा एक आरोपी के खिलाफ चल रहे मामले को रद्द कर दिया था, जिसमें वह अपने मोबाइल में इस प्रकार की सामग्री रखता था। मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने निराधार बताते हुए उसे रद्द कर दिया और मामले को सेशन कोर्ट में वापस भेज दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट ने आदेश में एक महत्वपूर्ण गलती की है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में यह देखना आवश्यक है कि सामग्री को किस प्रकार से संग्रहीत किया गया था और क्या इसे साझा करने का इरादा था।

बच्चों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम-

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। कई संस्थाएं है जो बच्चों के अधिकारों के लिए काम कर रही है।  उन्होंने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। अदालत ने यह भी कहा कि संसद को पॉक्सो अधिनियम में संशोधन पर गंभीरता से विचार करना चाहिए ताकि बाल यौन शोषण के मामलों में कानून को और अधिक सटीक बनाया जा सके। यह फैसला  न केवल कानून में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि यह फैसला समाज को यह भी स्पष्ट संदेश देता है कि बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन किसी भी परिस्थिति में सहन नहीं किया जाएगा। हमें मिलकर बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए।