राजस्थान में गणगौर त्यौहार का सांस्कृतिक महत्व और परंपराएं

राजस्थान में गणगौर त्यौहार बड़े धूमधाम और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। होली के दूसरे दिन से शुरू यह त्यौहार आमतौर पर 16 से 18 दिनों तक चलता है।

Apr 1, 2025 - 15:05
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राजस्थान में गणगौर त्यौहार का सांस्कृतिक महत्व और परंपराएं
Cultural significance and traditions of Gangaur festival in Rajasthan

इस दिन होती है माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा

राजस्थान में गणगौर त्यौहार बड़े धूमधाम और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। होली के दूसरे दिन से शुरू यह त्यौहार आमतौर पर 16 से 18 दिनों तक चलता है। इस पर्व के दौरान नवविवाहित, विवाहित और अविवाहित महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में इस त्यौहार को अलग-अलग रीती-रिवाजों और मान्यताओं के साथ मनाया जाता है, लेकिन सभी जगहों पर यह परंपराएं सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मानी जाती हैं।

गणगौर त्यौहार की पौराणिक कथा-

जानकारी के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव को अपने जीवनसाथी के रूप में मानती थीं। उन्होंने भगवान शिव की पूजा के लिए 15 दिनों तक कठोर तपस्या की। 16वें दिन, भगवान शिव उनकी निष्ठा और तपस्या से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें अपनी पत्नी स्वीकार किया। इस पावन अवसर पर गाजे-बाजे के साथ माता पार्वती के परिवार ने उन्हें भगवान शिव के साथ विदा किया। राजस्थान में गणगौर के त्यौहार में भगवान शिव को 'ईशर' और माता पार्वती को 'गणगौर' के रूप में पूजा जाता है।

गणगौर का महत्व-

इस त्यौहार का महत्व महिलाओं के जीवन में विशेष स्थान रखता है:

  • विवाहित और नवविवाहित महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं, जिससे उनके पति की लंबी उम्र की कामना की जाती है।
  • अविवाहित महिलाएं इस त्यौहार को इस आशा के साथ मनाती हैं कि उन्हें भगवान शिव जैसा जीवनसाथी मिले।

यहां का गणगौर है प्रसिद्ध-

राजस्थान के कई क्षेत्रों में गणगौर त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, लेकिन सबसे प्रसिद्ध गणगौर जयपुर, बीकानेर और उदयपुर में मनाए जाते हैं। जयपुर में गणगौर की शाही सवारी का आयोजन राजपरिवार द्वारा किया जाता है, जबकि बीकानेर और उदयपुर में भी शाही गणगौर की परंपरा प्रसिद्ध है।

गणगौर की पूजन विधि

पूजा की शुरुआत इस प्रकार होती है:

  • पहले दिन: महिलाएं मिट्टी से 'ईशर' और 'गणगौर' की मूर्तियों का निर्माण करती हैं और उन्हें बैंड-बाजे के साथ स्थापित करती हैं।
  • 16 दिनों तक: महिलाएं नदी या तालाब से ताजा पानी और घास लाकर रोजाना इन मूर्तियों का जल अभिषेक करती हैं।
  • 16वें दिन: पूजा के समापन पर गणगौर की शाही सवारी निकाली जाती है। इसके बाद सूर्यास्त के समय इन मूर्तियों को तालाब या जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है।

गणगौर मारवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर-

गणगौर को मारवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखा जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से चैत्र शुक्ल तीज को मनाया जाता है, जो होली के दूसरे दिन शुरू होकर 16 दिनों तक चलता है। इस दौरान महिलाएं समूह बनाकर पूजा करती हैं, पारंपरिक गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं।

गणगौर पूजन के आठवें दिन घुड़ला पूजन किया जाता है। इसमें महिलाएं पवित्र मिट्टी से बना घुड़ला लाकर उसकी पूजा करती हैं। यह परंपरा एक प्राचीन कहानी से जुड़ी है: बताया जाता है कि घुड़ले खां नामक एक व्यक्ति को राव सातल ने मार डाला था। इसके बाद तीजणियां उसके सिर को लेकर घर-घर घूमी और इस परंपरा की शुरुआत हुई।

गणगौर के दौरान आयोजन और उत्सव

गणगौर के दौरान पूरे राजस्थान में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जोधपुर जैसी जगहें अपनी सांस्कृतिक धरोहर के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में गाने, नाचने और विशेष भोग प्रसादी के आयोजन के साथ इस त्यौहार को मनाती हैं।

गणगौर त्यौहार न केवल धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक है, बल्कि यह राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतिनिधित्व करता है।