प्रदूषण से हो रही मौतों ने कोरोना के आंकड़ों को भी पीछे छोड़ा
एम्स दिल्ली के पूर्व डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने अब प्रदूषण को लेकर गंभीर चेतावनी दी है। उनका कहना है कि कोरोना महामारी की वजह से जितनी मौतें हुईं थी उससे कहीं ज्यादा मौतें हर साल सिर्फ प्रदूषण से रही हैं।
- प्रदूषण से हो रही मौतों ने कोरोना के आंकड़ों को भी पीछे छोड़ा
- एम्स के डॉ. गुलेरिया ने दी चेतावनी,हर वक्त खतरे में है हृदय रोगियों की जान
कोरोना के दौर मे लोगों को स्वास्थ के प्रति सचेत करने वाले एम्स दिल्ली के पूर्व डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने अब प्रदूषण को लेकर गंभीर चेतावनी दी है। उनका कहना है कि कोरोना महामारी की वजह से जितनी मौतें हुईं थी उससे कहीं ज्यादा मौतें हर साल सिर्फ प्रदूषण से रही हैं।
एक समय मे कोरोना (Corona) महामारी ने पूरे देश सहित दुनिया मे हाहाकार मचा दिया था चारों तरफ लोगों के मरने का सिलसिला जारी था लेकिन अब खराब वायु गुणवत्ता मृत्यु के लिए दूसरा प्रमुख जोखिम कारक बन गई है,जो कि तंबाकू और खराब आहार से भी आगे है, जिसमें पाँच साल से कम उम्र के बच्चे भी शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में तंबाकू के सेवन से हर साल 82 लाख लोगों की मौत होती है।
वर्ल्डोमीटर वेबसाइट के मुताबिक, दुनियाभर में कोरोना वायरस से अबतक करीब 70 लाख लोगों की मौत हुई है। सबसे ज्यादा अमेरिका में 12 लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं। भारत मे भी कोरोना सबसे ज्यादा जानलेवा साबित हुआ भारत मे इस वायरस से अबतक 5.33 लाख लोगों की जान चुकी है।
वायु प्रदूषण को लेकर लोग लापरवाह
2021 में जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग 80 लाख लोगों की मौत (Death) वायु प्रदूषण के कारण हो गई। यह आंकड़ा कोरोना के कारण मरने वाले लोगों से भी अधिक है।कोविड (covid) को लेकर लोग बहुत चिंतित है लेकिन हम वायु प्रदूषण के बारे में चिंतित नहीं हैं।'अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण का सबसे ज़्यादा असर बुजुर्गों पर होता है. शोधकर्ताओं के अनुमान के मुताबिक वायु प्रदूषण के चलते दुनिया भर में 75 प्रतिशत मौत 60 साल से अधिक उम्र के लोगों की होती है।
हृदय रोगियों को सबसे ज्यादा खतरा
वायु प्रदूषण हृदय की वाहिकाओं में सूजन या सूजन का कारण बनता है और इससे दिल का दौरा पड़ने की आशंका भी बढ़ जाती है। प्रदूषण से हृदय और फेफड़ों शरीर का कोई भी हिस्सा प्रभावित कर सकता है क्योंकि वायु प्रदूषकों के ये सूक्ष्म कण 2.5 माइक्रोन से कम होते हैं। ये रसायन फेफड़ों से शरीर में प्रवेश करते हैं, जिससे कई संक्रामक बीमारियों से लोग ग्रसित होते है।