जागरूकता के साथ ही हो सकता है निदान, सही समय पर पहचान और इलाज है जरूरी 

विश्व हीमोफीलिया दिवस एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम है, जिसे हर वर्ष 17 अप्रैल को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत विश्व हीमोफीलिया महासंघ (WFH) ने की थी।

Apr 16, 2025 - 16:08
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जागरूकता के साथ ही हो सकता है निदान, सही समय पर पहचान और इलाज है जरूरी 
World Hemophilia Day is an international health awareness program, which is celebrated every year on 17 April

विश्व हीमोफीलिया दिवस

विश्व हीमोफीलिया दिवस एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम है, जिसे हर वर्ष 17 अप्रैल को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत विश्व हीमोफीलिया महासंघ (WFH) ने की थी। इस दिवस का उद्देश्य सरकारों और नीति निर्माताओं से अपील करना है कि वे हीमोफीलिया की रोकथाम, नियंत्रण और बेहतर इलाज एवं देखभाल के लिए ठोस कदम उठाएं।

क्या है हीमोफीलिया ?

हीमोफीलिया एक दुर्लभ लेकिन गंभीर आनुवंशिक रक्तस्राव विकार है, जो मुख्य रूप से फैक्टर VIII या फैक्टर IX नामक रक्त के थक्के बनाने वाले प्रोटीन की कमी या गड़बड़ी के कारण होता है। इस बीमारी में व्यक्ति के शरीर में रक्त का थक्का सामान्य रूप से नहीं बन पाता, जिससे मामूली चोटों पर भी अत्यधिक रक्तस्राव हो सकता है।

हालांकि यह विकार सभी जातियों और नस्लों में पाया जा सकता है, लेकिन यह पुरुषों में अधिक आम होता है क्योंकि यह X गुणसूत्र से जुड़ा होता है। अगर किसी मां के शरीर में हीमोफीलिया का जीन है, तो बेटे को यह विकार होने की 50% संभावना रहती है, जबकि बेटी के वाहक (carrier) बनने की भी 50% संभावना होती है।

महिलाएं भी हीमोफीलिया से प्रभावित हो सकती हैं, और उनके लिए यह मासिक धर्म और प्रसव के दौरान विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसीलिए, इस विकार को लेकर जागरूकता, समय पर निदान और उचित इलाज अत्यंत आवश्यक हैं, ताकि हर किसी को समान और प्रभावी स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें।

विश्व हीमोफीलिया दिवस 2025 की थीम

वर्ष 2025 में विश्व हीमोफीलिया दिवस की थीम है: "सभी के लिए पहुंच: महिलाओं और लड़कियों को भी रक्तस्राव होता है"। यह थीम विशेष रूप से उन महिलाओं और लड़कियों पर ध्यान केंद्रित करती है जो रक्तस्राव संबंधी विकारों से ग्रसित होती हैं, लेकिन अक्सर उन्हें समय पर पहचान और उपचार नहीं मिल पाता।

इसका मकसद यह संदेश देना है कि रक्तस्राव विकार केवल पुरुषों तक सीमित नहीं हैं, और महिलाओं को भी समान रूप से सही निदान, उपचार और देखभाल की आवश्यकता होती है। यह थीम स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी के लिए समान पहुँच सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

विश्व हीमोफीलिया दिवस का महत्व

वर्ष 2000 में यह अनुमान लगाया गया था कि दुनियाभर में करीब 4 लाख लोग हीमोफीलिया जैसी रक्तस्राव विकार से प्रभावित हैं—यानी हर 10,000 जीवित जन्मों में से एक व्यक्ति। लेकिन उस समय इनमें से केवल 25% लोगों को ही उचित इलाज मिल पाता था। बाद में 2019 में एक मेटा-विश्लेषण में यह सामने आया कि वंशानुगत रक्तस्राव की स्थिति से प्रभावित पुरुषों की संख्या इससे कहीं अधिक, लगभग 11.25 लाख है।

यह चिंता का विषय है कि यहां तक कि उच्च आय वाले देशों में भी केवल 15% वैश्विक आबादी को हीमोफीलिया का प्रभावी इलाज मिल पाता है। वहीं, कम और मध्यम आय वाले देशों में सीमित संसाधनों के कारण न केवल इस बीमारी की पहचान में देरी होती है, बल्कि मृत्यु दर और बीमारी की गंभीरता भी ज्यादा होती है।

इस वर्ष, विश्व हीमोफीलिया दिवस अपनी 31वीं वर्षगांठ मना रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य है सरकारों और नीति निर्माताओं को इस दिशा में सक्रिय सहयोग देने के लिए जागरूकता फैलाना, ताकि रक्तस्राव विकारों से पीड़ित लोगों को बेहतर इलाज, रोकथाम और नियंत्रण की सुविधाएं मिल सकें।

विश्व हीमोफीलिया दिवस का इतिहास

विश्व हीमोफीलिया दिवस पहली बार 17 अप्रैल 1989 को विश्व हीमोफीलिया महासंघ (WFH) द्वारा मनाया गया था। यह दिन संगठन के संस्थापक फ्रैंक श्नेबेल के जन्मदिन के उपलक्ष्य में निर्धारित किया गया, ताकि हीमोफीलिया और अन्य रक्तस्राव विकारों के प्रति वैश्विक जागरूकता फैलाई जा सके।

हीमोफीलिया की पहचान का इतिहास काफी पुराना है। इसका उल्लेख सबसे पहले 10वीं शताब्दी में मिला, जब यह देखा गया कि कुछ पुरुष मामूली चोटों से भी असामान्य रूप से अधिक खून बहने के कारण मर जाते थे। उस समय इस बीमारी को "अबुलकासिस" कहा जाता था। लेकिन चिकित्सा तकनीक की सीमाओं के चलते इसका प्रभावी इलाज संभव नहीं था। उस दौर में शाही परिवारों में इस रोग के इलाज के लिए एंटीकोगुलेंट (रक्त को पतला करने वाली दवाएं) का उपयोग होता था, जो स्थिति को और अधिक गंभीर बना देता था।

1803 में फिलाडेल्फिया के डॉ. जॉन कॉनराड ओटो ने "ब्लीडर्स" (अत्यधिक रक्तस्राव वाले रोगी) पर शोध शुरू किया और निष्कर्ष निकाला कि यह रोग आमतौर पर माताओं से बेटों में अनुवांशिक रूप से फैलता है। इसके बाद, 1937 में हीमोफीलिया को टाइप A और टाइप B आनुवंशिक विकारों के रूप में वर्गीकृत किया गया, लेकिन उस समय भी इसके लिए कोई प्रभावी उपचार मौजूद नहीं था।

आज विश्व हीमोफीलिया दिवस का उद्देश्य है इस रोग को लेकर जागरूकता बढ़ाना, समय पर निदान सुनिश्चित करना और बेहतर उपचार की दिशा में वैश्विक प्रयासों को प्रोत्साहित करना।