डोरीलाल की चिंता
जुम्मन की खाला ने अलगू चौधरी से पूछा था ’क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ? ये सवाल आज देश के हर नेता, वकील, जज, व्यापारी, पुलिस, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधान मंत्री, बड़े अधिकारी से लेकर पटवारी तक से पूछा जा रहा है।
क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?
जुम्मन की खाला ने अलगू चौधरी से पूछा था ’क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ? ये सवाल आज देश के हर नेता, वकील, जज, व्यापारी, पुलिस, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधान मंत्री, बड़े अधिकारी से लेकर पटवारी तक से पूछा जा रहा है। बोलो भाई क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ? सब बड़ी उलझन में हैं। यूं चुप सी क्यां लगी है अजी कुछ तो बोलिये ? बड़े बड़े लोगों का मामला है। मंत्री संत्री सेठ धन्ना सेठ पूंजीपति सब एक ओर हैं। बड़े बड़े अखबार वाले हैं। वकील न्यायाधीश सब एक ओर हैं। बड़े बड़े व्यापारी हैं। बड़े बड़े धर्माचार्य हैं। अब परीक्षा की घड़ी आ गई है। एक ही सवाल पूरी धरती और आसमान में घूम रहा है और गूंज रहा है - क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?
अब समझाया जा रहा है कि आज का समय बदल चुका है। ईमान की परिभाषा बदल चुकी है। ईमान भी बदल चुका है। उम्मीद बहुत कम है। ईमान की कीमत इतनी कम कभी न रही। अब ईमान की कोई पूछ परख नहीं रही। काहे का ईमान। जनता ने भी नई परिभाषा को स्वीकार कर लिया है। ईमान का मतलब है जिसमें तुम्हें फायदा हो। जिससे तुम्हारे दुश्मन का नुकसान हो। इतनी नई और सरल परिभाषा आ जाने से बहुत सुभीता हो गया है। आप कुछ भी कर सकते हैं और आपके ईमान पर कोई सवाल नहीं उठ सकता।
ईमान के मामले में शर्मो हया का पर्दा या दीवार जो भी थी, वो पर्दा हट गया दीवार ढ़ह गई और उसकी जगह एक साफ सुथरी समतल जमीन बन गई। उस पर चमचमाते मंहगे टाइल्स लग गये हैं जिनमें लिखा हुआ है सत्यमेव जयते। उसे कचरते हुए देश आगे बढ़ रहा है। ईमान के आगे बे कब लग गया और ईमान कब बेईमान हो गया ये डोरीलाल को अच्छे से पता है। पता आपको भी है मगर आप बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं कर रहे हो। आप अमृतकाल का अमृत पी रहे हो। ये अमृत विकास के लिए दिए जा रहे ठेकों में, विकास की दलाली में और विकास को ब्लैक में बेचकर प्राप्त हो रहा है।
आम इंसान को ईमान और न्याय दीवाने आम में मिलता था। दीवाने आम मिट गया। जैसे रेलवे का जनरल डिब्बा मिट गया। जरूरत ही नहीं रही। अब किसी जनरल आदमी को कहीं जाने की जरूरत नहीं रही। जब भूखों मरना है तो जहां रह रहे हो वहीं मरो। घर से सैकड़ों मील दूर जाकर भूखे मरने से ज्यादा अच्छा है कि तुम अपनी जन्मभूमि में ही भूखे मरो और स्वर्गारोहण करो। तुम्हें मालूम ही होगा कि जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है। हम लोग देश में इतने सालों से शासन कर रहे हैं। हमें मालूम है कि जिन्हें अपने गांव में खाने को नहीं मिलता वो धोखा देकर सैकड़ों मील दूर चले जाते हैं। काम मिलने का बहाना करके। फिर वहां मर जाते हैं। ये धोखाधड़ी अब आम हो गई है। शासन इस तरह के आवागमन पर कड़ी नजर रखे है। इन्हीं लोगों ने करोना के समय सैकड़ों मील पैदल चलकर भूखों मरकर शासन को बदनाम किया था।
खास लोगों को ईमान और न्याय दीवाने खास में मिलता था। दीवाने आम मिट गया पर दीवाने खास फलफूल रहा है। अब देश में दीवाने खास ही चारों ओर पसरा हुआ है। वहीं से राज काज चलता है। खास खास लोग दीवाने खास में बैठ कर राज कर रहे हैं। सबसे खास आदमी तख्ते ताऊस में बैठता है। ये कुछ खास लोग देश के हर खासो आम की जिन्दगी का फैसला करते हैं। खास आदमी तब ही खास रहता है जब उसके सामने आम आदमी गिड़गिड़ाए। एड़ियां रगड़े। जान की भीख मांगे। न्याय की गुहार लगाए। खास आदमी के पास दौलत है महल है ऐशो आराम है। उसे ये हमेशा चाहिए। उसे ये हर समय बढ़ चढ़ कर चाहिए। इसके लिए आम आदमी का मरना जरूरी है। जब आम मरेगा तभी खास जियेगा। आम लोग बहुत हैं। उनमें से कुछ मर जाएं तो ये एक तरह से उनके लिए अच्छा ही है। मगर खास आदमी नहीं मरना चाहिए। उसका पेट भरा रहना चाहिए। उसके पास पेट के अलावा कई एडीशनल पेट हैं। उनमें भी भरता जाता है। उसका पेट कभी फटता नहीं।उसे बड़े पेट की बीमारी है। वो ठीक नहीं हो सकती। इलाज केवल एक है उसका पेट हमेशा भरता रहे। इसके लिए आम आदमी का पेट खाली रहना जरूरी है।
गरीबी की दीनता का वर्णन करने के लिए शब्द कम पड़ते हैं। गरीब के बाप दादा परदादा सभी गरीब थे। वे गरीब पैदा होते हैं। और गरीब मर जाते हैं। वे जब तक रहते हैं केवल जीवित रहते हैं। वो मर न जाएं और काम करते रहें इसके लिए उन्हें थोड़ा बहुत खाना कपड़ा मिलता रहता है। वो जानते हैं कि उन्हें मेहनत करना है तब उन्हें खाना मिलेगा। वो जानते हैं कि जिस दिन वो बोलेंगे मारे जाएंगे। उन्हें बताया जाता है कि तुम इस जन्म में इसलिए गरीब हो क्योंकि पिछले जन्म में तुमने बहुत पाप किए थे। तुम यदि इस जीवन में चुपचाप भूख गरीबी सहते सहते मर जाओगे तुम सीधे स्वर्ग जाओगे। कभी कभी उन्हें भंडारे में खाना खिलाया जाता है और कहा जाता है कि तुम गर्व करो तो वे गर्व कर लेते हैं।
अब समझाया जा रहा है कि अपना सोचने का तरीका बदलो। यदि बिगाड़ करोगे तो ठोके जाओगे। इसलिये चुप रहो। चुप्पी से ज्यादा मीठा कुछ नहीं। चुनाव के रंगमंच पर नाटक चल रहा है। अलग अलग अभिनेता आ रहे हैं। अपना अपना किरदार निभा रहे हैं और जा रहे हैं। जनता एकटक देखे जा रही है। और चुप है। जनता के मन में एक सवाल है - इस नाटक में वो कहां है ? उसकी चर्चा तो हो ही नहीं रही। वो नाटक को केवल देख सकता है। वो उसमें रोल नहीं कर सकता। वो केवल एक मूक दर्शक रह सकता है।
तो अंत में अपना स्थान ग्रहण करने से पहले आपसे इतना ही पूछता हूं
क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?
डोरीलाल ईमानप्रेमी