महाकुंभ में वायरल हुआ 200 करोड़ का सोने का सिंहासन

उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़े के पीठाधीश्वर अवधूत बाबा उर्फ आचार्य महामंडलेश्वर अरुण गिरी का सोने का सिंहासन वायरल हो रहा है, यह वाकई दिलचस्प है।

Jan 25, 2025 - 14:41
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महाकुंभ में वायरल हुआ 200 करोड़ का सोने का सिंहासन
Gold throne worth Rs 200 crore goes viral in Maha Kumbh
महाकुंभ में वायरल हुआ 200 करोड़ का सोने का सिंहासन


उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़े के पीठाधीश्वर अवधूत बाबा उर्फ आचार्य महामंडलेश्वर अरुण गिरी का सोने का सिंहासन वायरल हो रहा है, यह वाकई दिलचस्प है। गोल्डन बाबा के नाम से मशहूर अरुण गिरी को उनके एक शिष्य ने यह सिंहासन गिफ्ट किया है, और इसकी कीमत भी किसी चमत्कारी चीज से कम नहीं है! 251 किलोग्राम वजन और 200 करोड़ की कीमत सुनकर तो ऐसा लगता है जैसे यह कोई ऐतिहासिक धरोहर हो।

महाकुंभ में सोने का सिंहासन सचमुच चर्चा का एक बड़ा विषय बन गया है। आचार्य अरुण गिरी, जिन्हें गोल्डन बाबा के नाम से जाना जाता है, के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह करीब 6 करोड़ रुपए का सोना पहनते हैं, जो उनके अद्भुत ऐश्वर्य और आस्थावान जीवन को दर्शाता है। स्वामी प्रकाशानंद के मुताबिक, यह अनूठा उपहार उनके एक शिष्य ने उन्हें भेंट किया है, जो इस रिश्ते की गहरी श्रद्धा और सम्मान को दिखाता है।

महाकुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर-14 में स्थित अवधूत बाबा के शिविर में रखा गया सोने का सिंहासन, न केवल श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है, बल्कि इसे देखने के लिए भीड़ भी उमड़ रही है। स्वामी प्रकाशानंद ने यह जानकारी दी कि आचार्य अरुण गिरी जी के सोने के आभूषणों की वजह से उन्हें गोल्डन बाबा के नाम से जाना जाता है।

दिलचस्प बात यह है कि सिंहासन को भेंट देने वाले शिष्य के बारे में कोई जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है, जो इसे और भी रहस्यमय बना देता है। और अब, इस सिंहासन पर सवार होकर वे मौनी अमावस्या के दिन अमृत स्नान करने जाएंगे, जो इस आयोजन को और भी खास बना देता है। साथ ही, सिंहासन के साथ एक मंच और स्टूल भी रखा गया है, ताकि वे आसानी से सिंहासन पर विराजमान हो सकें।

इस तरह की भव्यता और आयोजन महाकुंभ के धार्मिक महत्व को और भी बढ़ा देते हैं, लेकिन क्या आपको लगता है कि ऐसे भव्य उपहार और ऐश्वर्य में आध्यात्मिकता का वास्तविक रूप कहीं खो जाता है?