25 मार्च 2024 को मनाई जाएगी होली

हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस साल 24 मार्च रविवार की रात होलिका दहन के बाद 25 मार्च सोमवार को होली का त्योहार उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाएगा।

Mar 11, 2024 - 16:52
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25 मार्च 2024 को मनाई जाएगी होली
Holi will be celebrated on 25 March 2024
25 मार्च 2024 को मनाई जाएगी होली
25 मार्च 2024 को मनाई जाएगी होली
25 मार्च 2024 को मनाई जाएगी होली

24 मार्च को होलिका दहन

रंगों का त्योहार होली देश भर में धूमधाम से मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस साल 24 मार्च रविवार की रात होलिका दहन के बाद 25 मार्च सोमवार को होली का त्योहार उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाएगा। 
डोल पूर्णिमा, रंगवाली, होली, धुलंडी, धुलेटी, मंजल कुली, याओसांग, उकुली, जाजिरी, शिगमो और फगवा के नाम से भी रंगों के त्योहार का जाना-पहचाना जाता है। दो दिन के इस त्योहार में आयोजनों की धूम रहती है। दरअसल होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। ये त्योहार बसंत के आगमन और सर्दियों के अंत का भी प्रतीक है। होली का उत्सव पूर्णिमा की शाम से शुरू होता है। ये हिंदू कैलेंडर के फाल्गुन माह में आता है। 

होलिका दहन का मुहूर्त-
इस वर्ष देश में होली का त्योहार 25 मार्च 2024 को मनाया जाएगा। इसके एक दिन पहले यानी 24 मार्च 2024 को होलिका दहन किया जाएगा। 24 मार्च 2024 को होलिका दहन का मुहूर्त शाम 7.19 से रात 9.38 बजे तक है। इसके बाद 25 मार्च को रंग वाली होली का दिन है, जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। इस दिन के लिए महिने पहले से प्लानिंग की जाती है कि इस बार होली का त्योहार कैसे, कहां और किस तरह मनाना है। 

होलिका दहन की पूजा विधि-
होलिका दहन लकड़ी की चिता के चारों ओर से तीन या सात बार सफेद धागा या कच्चा सूत लपेटकर मनाया जाता है। फिर उस पर पवित्र जल, कुमकुम और फूल छिड़ककर चिता की पूजा की जाती है। पूजा पूरी करने के बाद चिता को आग के हवाले करने की रस्म अदा की जाती है। 

होली का धार्मिक महत्व-
हिंदुओं में होली के त्योहार का बड़ा धार्मिक महत्व है। यह त्योहार हिन्दू धर्म के महत्वपूणए त्योहारों में से एक है। हिंदू होली का त्योहार उत्साह के साथ मनाते हैं। ये त्योहार लगातार दो दिनों तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। एक दिन छोटी होली और दूसरे दिन धुरेड़ी,जिसे बड़ी होली या फिर रंग वाली होली के नाम से भी जाना जाता है। 

होली में क्या-क्या करते हैं-
होली के त्योहार के पहले दिन यानी छोटी होली में लोग अलाव जलाते हैं। होलिका की पूजा करते हैं। 7 बार परिक्रमा करते हैं और फिर रात में दहन करते हैं। दूसरे दिन धुरेड़ी में लोग रंग और पानी से पूजा करते हैं। सभी लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं और एक दूसरे को गुलाल रंग लगाते हैं। इस रंगीन त्योहार में लोग मिठाईयां बांटते हैं, संगीत पर थिरकते हैं और खूब रंग-गुलाल उड़ाते हैं। 

होली: इतिहास और महत्व- 
रंगों का त्योहार होली भारत में सबसे आनंदमय उत्सवों में से एक है। इस त्योहार पर लोग अपने पुराने गिले-शिकवे और मतभेदों को भूलकर एक साथ खुशियां मनाते हैं। होली के त्योहार की उत्पत्ति की जानकारी प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं से लगाया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि इस त्योहार की शुरूआत होलिका और प्रह्लाद की कथा के साथ हुई थी। इन पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को भगवान विष्णु ने उसके पिता हिरण्यकश्यप के बुरे इरादों से बचाया था। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वो आग में नहीं जल सकती। उसने प्रह्लाद को धोखे से अपनी गोद में बैठाकर इस वरदान का उपयोग कर प्रह्लाद को मारने की कोशिश की। हालांकि आग प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकी और होलिका आग की लपटों में जलकर भस्म हो गई। होली के पहले दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है। जिसे होलिका दहन के नाम से जाना जाता है।

होली को रंगों का त्योहार क्यों कहते हैं- 
होली को रंगों का त्योहार कहा जाता है। लोग एक-दूसरे पर चमकीले रंग का पाउडर गुलाल फेंकते हैं। 
इस परम्परा को होली खेलना के रूप में जाना जाता है। रंगों के खेलना इस त्योहार के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। होली के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले रंग आमतौर पर फूलों और जड़ी बूटियों से बनाए जाते हैं। इसके अलग-अलग प्रतीकात्मक अर्थ होते हैं। उदाहरण के तौर पर लाल प्रेम और उर्वरता का प्रतिनिधित्व करता है। जबकि हरा नई शुरूआत और विकास का प्रतिनिधित्व करता है। यहां ये भी बताते चले रंग लोगों की विभिन्न भावनाओं और मनोदशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिन्हें वे त्योहार के दौरान व्यक्त करते हैं। 

लठ्ठ मार होली क्यों मनाई जाती है-
यह त्योहार एक प्रसिद्ध हिंदू कथा का मनोरजन माना जाता है। जिसके अनुसार भगवान कृष्ण ने अपनी प्रिय राधा के शहर बरसाना का दौरा किया था। जहां पर श्रीकृष्ण ने राधा और उलकी सहेलियों को चिढ़ाया और बदले में उन्हे बरसाना से बाहर निकाला गया। किवंदती के ही अनुरूप, नंदगांव के पुरूष हर साल बरसाना जाते हैं। वहां की महिलाएं उनका स्वागत लठ्ठ मार कर करती है। बरसाना में राधा रानी मंदिर के विशाल परिसर में लठ्ठ मार होली उत्सव एक सप्ताह से अधिक समय तक चलता है। जहां प्रतिभागी नृत्य करते हैं। इसके अलावा सभी ठंडाई का सेवन भी करते हैं।