वो कहे जा रहा था लगातार "हुईहै वही जो राम रचि राखा" "राम जी की चिड़िया राम जी का खेत" डोरीलाल उससे पूछे जा रहे थे कि क्यों भाई आखिर बात क्या है ? हुआ क्या है ? मगर वो जवाब न दे। मैंने पूछा भाई इतनी निराशा क्यों ? बताओ तो सही किस बात ने तुम्हें इतना निराश कर दिया है। वो बोला कि मैं रोज जाता हूं। पत्ते खेलता हूं। मेरे पास पत्ते भी अच्छे आते हैं। मुझे विश्वास हो जाता है कि मैं जीत रहा हूं। सामने वाले को भी विश्वास हो जाता है कि वो हार रहा है। मगर जब पत्ते खुलते हैं तो हमेशा तीन इक्के उसी के पास निकलते हैं। ये बार बार होता है। जुआंघर वाले से कहता हूं तो वह कहता है कि जुएं का नियम है जिसके पास तीन इक्के वो ही जीतेगा। उसके पास तीन इक्के हैं इसलिए वो जीता है। मैं कहता हूं कि हमेशा इक्के उसके पास ही क्यों निकलते हैं। वो कहता है कि हमारे जुआंघर में कोई बेईमानी नहीं होती। हमारा जुआंघर विश्व में श्रेष्ठ है। हमारे देश में जुएं में ईमानदारी की सुदीर्घ परंपरा है। हमारे देश में हमेशा जुआं होता रहा है और उसमें इक्के वाला जीतता रहा है। तुम बार बार एक ही रोना रोते रहते हो कि बेईमानी हो रही है। इक्के उसी के पास निकलते हैं। ये बिलकुल झूठ है। मैं दावे से कहता हूं कि ये झूठ है। जुआंघर मालिक जोर जोर से हंसता है। बाकी सब भी जोर जोर से हंसते हैं। चारों ओर हंसी का फौव्वारा छूट पड़ता है।
डोरीलाल ने उससे कहा कि जुआं खेल ही बेईमानी का है। इसे तुम खेलते ही क्यों हो ? बेईमानी के खेल में बेईमान ही जीतेगा। उसने कहा मगर जुआंघर के मालिक को तो देखना चाहिए कि बेईमानी हो रही है। उसे तो सचाई का साथ देना चाहिए। मैंने कहा कि तुम जैसे भोले मूर्ख लोगों के कारण ही ईमानदारी बदनाम हो रही है। अरे भाई जुआंघर का मालिक और लगातार जीतने वाला जुआंरी अलग अलग थोड़े ही हैं। दोनों पार्टनर हैं। जुआंघर बनाया किसने है ? जीतने वाले ने। जुआंघर का मालिक किसने चुना है जीतने वाले ने। तुम्हें इतनी सी बात समझ नहीं आती और जुआं खेलने चले जाते हो। इस जुआंघर में तीन इक्के पहले से उस जीतने वाले के पास रहते हैं। तुम जुआरियों के बीच 49 पत्ते बंटते हैं। इतनी गिनती तुम्हें नहीं आती तो किसकी गलती है ? तुम जैसे बेवकूफ बार बार जुआं खेलने चले जाते हैं इसलिए जुआंघर चलता है। अरे इतनी हिम्मत क्यां नहीं करते कि एक बार कह दो जुआंघर बेईमानी का अड्डा है। जुआंघर का मालिक जीतने वाले से मिला हुआ है। हम जुआं नहीं खेलेंगे। बिना खिलाड़ियों के जीतने वाला जीतेगा कैसे ? जुआंघर के मालिक की पोल तो खुलेगी। मगर हारने वालों को भी जुआं खेलने और हारने की लत लग गई है।
जब शकुनि मामा जुआंघर के मालिक हों तो कौरव क्यों न जीतें ? ये सब जानते हुए भी कि शकुनि मामा और कौरव मामा भांजे हैं और शकुनि मामा कौरवों के सगे हैं हमारे नहीं तो भी पांडव जुआं खेलने बैठ जाते हैं तो मूर्ख कौन हुए ? पांडव हुए। फिर भी ये मूर्ख जुआं खेलते रहे। एक के बाद एक संपत्ति हारते रहे। मूर्ख इतने थे कि द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया। वो इनकी पत्नि थी मगर संपत्ति के रूप में दांव पर लगा दिया। वो भी हार गये। जंगल चले गए मगर अक्ल न आई कि जुआं खेलना भले लोगों का काम नहीं है। भले लोगों के साथ कौन खड़ा होता है ? धृतराष्ट्र और गांधारी और सारे धर्माचार्य किसके साथ थे ? वो धर्म और न्याय के साथ नहीं थे। वो कौरवों के साथ थे।
आज भी सारे धर्माचार्य और न्यायाचार्य किसके साथ हैं ? कौरवों के साथ। तीन इक्के बेईमानी से अपने पास रखने वाले और जुआं जीतने वाले के साथ सब हैं। उधर धर्म और न्याय अकेला खड़ा है। लुटा पिटा। उसके साथ रोने वाला भी कोई नहीं और जुआं जीतने वाले के आगे सब कूद कूद कर नाच रहे हैं। ढोल बजा बजा कर नाच रहे हैं। न्यायाचार्य पर्दे की पीछे छुपकर तो कभी सामने आकर कौरवों का हौसला बढ़ा रहे हैं जुआं जीतने वाले तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं। हम किसी फरियादी को अपने पास फटकने नहीं देंगे। आ गया तो उसको कल बुलायेंगे और ये कल कभी आएगा नहीं। युग बीत जाएंगे।
अच्छा हुआ महाभारत हो गया और फैसला हो गया कि कौरव हारे पांडव जीते। यदि ये किसी न्यायाचार्य के पास अपना मुकदमा लेकर चले जाते तो आज भी फैसला न हो पाता। जो होता है अच्छे के लिए होता है। कौरव पांडव के संघर्ष में कौरवों का राज्य गया और पांडवों को राज्य मिला मगर जो लाखों लोग दोनों पक्षों की ओर से लड़े और मर गये उन्हें क्या मिला ? उनके कोई नाम नहीं हैं। वो अग्निवीर हुए।
आज भी जुआं खेलने वाले हारने वाले और जीतने वालों के अलावा सब संख्याएं हैं। इतने लाख इतने करोड़ इतने हजार ये वोट डालने के पुतले हैं। इनके कोई नाम नहीं। इनका इतना ही उपयोग है। ये इनको भी मालूम है। हमें एक दिन जाना है और वोट डालना है। बाकी काम हारने और जीतने वाले कर लेंगे।
ये देश कैसे चलता है ? ये देश रोज मेहनत करने वालों और उत्पादन करने वालों से चलता है। ये लोग केवल अपना पेट पालने का संघर्ष करते हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं। ये जीवित हैं क्योंकि ये किसी तरह अपने लिये जीवित रहने लायक खाना जुटा लेते हैं। ये केवल संख्या हैं। ये बिना किसी योजना के धरती पर आ गये हैं। ये बिना किसी कारण के धरती से चले जाएंगे। इनके साथ अमर होने की कोई लालसा भी नहीं है। ये जीवित हैं क्योंकि इनके फेफड़े मुफ्त की सांस लेकर शरीर को जिंदा रखते हैं। इनके शिलालेख नहीं बनते। इनके स्मारक नहीं बनते। इनके लिए शांति पाठ नहीं होता।
जुआं खेलना केवल चतुर चालाक लोगों का, बेईमानों का खेल है। यदि आप हार जाते हैं तो आप प्रमाणित करते हैं कि आप चालाक और कुटिल नहीं हैं। आपको जुआं खेलना नहीं आता है। मत खेलो न। रोओ मत।
डोरीलाल जुआंप्रेमी
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