दशहरे की पवित्र परंपरा ,शुभता के प्रतीक नीलकंठ के दर्शन
नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना जाता है दशहरा पर्व पर नीलकंठ दर्शन को शुभ और भाग्य को जलाने वाला माना जाता है| ऐसी मान्यता है कि दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
दशहरे पर नीलकंठ के दर्शन की परंपरा वर्षो से जुड़ी है नीलकंठ भारत मे हिंदू किंवदंतियों से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि विष्णु भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए इसकी पूजा की जाती है,खास कर दशहरा (Dussehra) या दुर्गा पूजा (Durga Puja) के अंतिम दिन नीलकंठ को पकड़ा एवं छोड़ा जाता है। नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना जाता है दशहरा (Dussehra) पर्व पर नीलकंठ दर्शन को शुभ और भाग्य को जलाने वाला माना जाता है। नीलकंठ का अर्थ "नीला गला" होता है,जो कि हिन्दू देवता शिव से जुड़ा एक नाम (भगवान शिव का जहर पीने के कारण गला नील हो गया था) है।
दर्शन से बनते है बिगड़े काम
ऐसी मान्यता है कि दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।जिसके चलते दशहरे के दिन हर एक व्यक्ति इसी आस में आकाश में टकटकी लगाकर निहारता रहता है कि उसे नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाए जिससे साल भर उसके घर परिवार में शुभ कार्य का सिलसिला चलता रहे। नीलकंठ के दर्शन से घर में धन-धन की वृद्धि होती है।
नीलकंठ के दर्शन के बाद रावण को मारा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक,जब भगवान राम लंका पर विजय पाने जा रहे थे,तब उन्हें नीलकंठ के दर्शन हुए थे जिसके बाद भगवान राम ने लंका पर विजय हासिल की थी।रावण सिद्ध ब्राह्मण था और परम तपस्वी था। उसने अपनी तपस्या से कई वरदान पाए थे।रावण अमर तो नहीं था,लेकिन उसे मारना मुश्किल था। लेकिन नीलकंठ के दर्शन के बाद भगवान राम ने परम तेजस्वी रावण को मारकर माता सीता को मुक्त कराया था।
भगवान राम को लगा था श्राप
लंका जीत के बाद जब भगवान राम (RAM) को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था तब भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ मिलकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की और स्वयं को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त कराया तब भगवान शिव नीलकंठ पक्षी के रूप में धरती पर पधारे थे।