1954 के कुंभ में भी वीआईपी मूवमेंट के कारण मची थी भगदड़
भव्य, दिव्य और डिजिटल दौर के कुंभ में भी पहले होने वाली घटनाएं दोहराई जा रही हैं। वीवीआईपी के कारण एक बार फिर यहां पर अमृत स्नान के चक्कर में लोग मोक्ष की भेंट चढ़ गए हैं।

इतिहास खुद को दोहराता है। भव्य, दिव्य और डिजिटल दौर के कुंभ में भी पहले होने वाली घटनाएं दोहराई जा रही हैं। वीवीआईपी के कारण एक बार फिर यहां पर अमृत स्नान के चक्कर में लोग मोक्ष की भेंट चढ़ गए हैं। आजादी के बाद पहली बार लगे कुंभ में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की नाम को सुनकर भगदड़ मच गई थी, लेकिन भगदड़ की वजह नेहरू जी नहीं थे, बल्कि कुंभ में मौजूद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद थे। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक वरिष्ठ पत्रकार ने 1954 के कुंभ का आंखों देखा नजारा बयां किया है। क्या हुआ था 71 साल पहले लगे कुंभ में मौनी अमावस्या के दिन आइए जानते हैं-
वरिष्ठ पत्रकार नरेश मिश्र ने बताया कि उस समय उनकी उम्र 22 वर्ष थी। वे पत्रकार नहीं थे, लेकिन पत्रकार बनने की राह पर निकल पड़े थे। तभी कुंभ में उन्होंने आंखों देखी रिपोर्ट तैयार की और उन्हें अखबारों तक भी पहुंचाया। साधनों की कमी के बीच और व्यस्थाओं की कमी के साथ कुंभ का आयोजन हुआ। जिसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू स्वयं तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे और शाही स्नान के एक दिन पहले ही वहां से निकल गए। प्रशासनिक जिम्मेदारी जमना प्रसाद त्रिपाठी को दी गई थी। जमना प्रसाद को यकीन था की कुंभ को अच्छे से संभाल लेंगे और वैसा किया भी।
जरा सी चूक और संचार साधनों के अभाव ने उसे इतनी बड़ी घटना में तब्दील कर दिया। शाही स्नान के दिन सुबह से ही राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद किले के बुर्ज पर बैठकर दशनामी सन्यासियों का जुलूस देख रहे थे। जुलूस को देखकर राष्ट्रपति ने खड़े होकर सन्यासियों का अभिवादन किया। राष्ट्रपति को देखकर सन्यासियों का उत्साह बढ़ गया और वे अस्त्र शस्त्र के साथ अपना कौशल दिखाने लगे। यहां भीड़ में फंसे लोग परेशान होकर निकलने की कोशिश करने लगे और यहीं से भगदड़ की शुरूआत हुई। 45 मिनट के नजारों में कुंभ में तांडव मच गया। लाशें बिछ गईं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 700 लोगों की मौत हुई थी।