अमेरिकी खजाने से भी ज्यादा सोना है, भारत के मंदिरों के पास 

हमारे देश में सोना सभी को पसंद है। जब बच्चा जन्म लेता है, तब से ही उसे सोने गहने उपहार स्वरूप दिए जाने लगते हैं, शादी हो या जन्मदिन इन सभी में गहनों का दिया जाना शुभ माना जाता है। देश में साल में ऐसे कई शुभ मुहूर्त भी पड़ते हैं।

May 29, 2024 - 14:52
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अमेरिकी खजाने से भी ज्यादा सोना है, भारत के मंदिरों के पास 
Indian temples have more gold than the US treasury

हमारे देश में सोना सभी को पसंद है। जब बच्चा जन्म लेता है, तब से ही उसे सोने गहने उपहार स्वरूप दिए जाने लगते हैं, शादी हो या जन्मदिन इन सभी में गहनों का दिया जाना शुभ माना जाता है। देश में साल में ऐसे कई शुभ मुहूर्त भी पड़ते हैं। जिसमें सोना, चांदी खरीदना अच्छा माना जाता है। ऐसे में यहां पर सोना ज्यादा होना भी लाजमी है। आज भारत की टेंपल इकोनॉमी 3 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की हो चुकी है। वहीं तीर्थ यात्रा पर हम भारतीय हर साल 4.74 लाख करोड़ रुपए खर्च कर देते हैं। 

भगवान जगन्नाथ को आदिवासियों के घर से धोखे से एक सेनापति लाया था पुरी

दसवीं सदी से भी काफी पहले की बात है। जब ओडिशा के दक्षिण में कोरापुट जिले में सबर जनजाति रहा करती थी। उनका एक राजा था विश्व बसु। ये सभी उस क्षेत्र में एक पत्थर की प्रतिमा को पूजते थे। ये जनजाति इसी प्रतिमा को अपने अस्तित्व से जोड़कर देखती थी। इसी ताकत से वो अपना इलाका किसी को जीतने नहीं देते थे। उस वक्त पुरी का राजा था, जो अपना साम्राज्य बढ़ाने में लगा हुआ था। मगर, उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा कोरापुट की यही जनजाति थी। राजा ने बहुत कोशिश की, मगर वह इन्हें जीत नहीं पाया। आखिकरकार उसने अपने चतुर सेनापति विद्यापति को कोरापुट भेजा, जो भेष बदलकर इन आदिवासियों के बीच रहने लगा। अपनी किताब उदीप्त उड़ीसाः अब भी दरिद्र क्यों में दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे डॉ.मनोरंजन मोहंती कहते हैं कि ओडिशा की कहानी भगवान जगन्नाथ के बहाने उड़िया संस्कृति और अर्थव्यवस्था को अपने अधिकार में लेने से जुड़ी है। 

भगवान जगन्नाथ का राज जानने किया राजा की बेटी से प्यार 

डॉ.मोहंती के अनुसार, विद्यापति ने विश्व बसु की बेटी ललिता को अपने प्यार के जाल में फंसाया और उससे शादी कर ली। जब काफी समय बीत गया तो विद्यापति ने अपनी पत्नी ललिता से कहा कि वो उस भगवान को देखना चाहता है, जिससे उन आदिवासियों को ताकत मिलती थी। तब ललिता ने कहा कि हमारे भगवान तक पहुंचने का रास्ता किसी बाहरी को नहीं दिखाया जा सकता। ऐसे में अगर आपको भगवान के दर्शन करने हैं तो आपकी आंखों पर पट्टी बांधकर वहां तक ले जाना होगा। विद्यापति इस बात पर राजी हो गया। 

रास्ते जानने के लिए गिराता गया सरसों के बीज

आंखों पर पट्टी बांधकर जब भगवान की प्रतिमा के पास ले जाया जा रहा था, तब रास्ते की पहचान के लिए विद्यापति ने अपनी मुट्ठीयों से सरसों छीटता गया। बाद में जब वह पुरी चला गया को उसने बारिश के बाद कोटापुर पर सेना के साथ चढ़ाई कर दी। उस दौरान सरसों उग आई थी। जो भगवान की प्रतिमा तक पहुंचने की पहचान बनी। विश्व बसु हार गए, तब भगवान जगन्नाथ को विद्यापति अपने साथ पुरी लेकर आए। वह अपने साथ पत्नी ललिता और ससुर को भी लेकर आए। बाद में 21वीं सदी के आसपास गंग वंश के शासक अनंत वर्मन चोड़गंग देव ने भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनाया और उनके लिए रत्न भंडार भी बनवाया। 

काली मंदिर की चिट्ठी लेकर पहुंचे थे अंग्रेज 

1803 की बात है, जब एक अंग्रेज कमांडर कलकत्ता स्थित ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से मंजूरी लेकर पुरी पहुंचे और उन्होंने भगवान जगन्नाथ मंदिर के एक ब्राह्मण को काली मंदिर की चिट्ठी दी और कहा कि हम भगवान जगन्नाथ मंदिर की पूजा में मदद करेंगे। 1817 में अंग्रेजों और स्थानीय राजा के बीच बड़ी लड़ाई हुई, जिसमें राजा हार गया। तभी से यह मंदिर अंग्रेजों के कब्जे में रहा। आजादी के बाद यह मंदिर केन्द्र सरकार के अधिकार में हो गया। 

अमेरिकी खजाने से तीन गुना ज्यादा सोना मंदिरों में 

भारत में मंदिरों के खजाने में इतना सोना है कि वो अमेरिकी सरकार के खजाने से भी तीन गुना ज्यादा है। मंदिरों में भगवान को सोना इतना पसंद है कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर, तिरुपति बालाजी मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, वैष्णो देवी मंदिर जैसे मंदिरों में 4000 टन सोना रखा है। यह आंकड़ा वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का है। भारत का गोल्ड रिजर्व भले ही 800 टन से ज्यादा हो, मगर हम भारतीयों को भी सोना इतना भाता है कि 25 हजार टन से ज्यादा सोना हम सहेजकर रखे हुए हैं। यह दुनिया में सबसे ज्यादा गोल्ड रिजर्व रखने वाले अमेरिका के 8,965 टन का करीब तीन गुना है। 

तीर्थ यात्रा पर भी होता है अधिक खर्च 

भारत में मंदिरों में भगवान का दर्शन करने का चलन, परंपरा और आध्यात्मिकता से इतना जुड़ा है कि हर साल 4.74 लाख करोड़ रुपए तो सिर्फ तीर्थाटन या धार्मिक यात्राओं पर ही लोग खर्च कर देते हैं। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के आंकड़ों के अनुसार, भारत की टेंपल इकोनॉमी करीब 3.02 लाख करोड़ रुपए की हो चुकी है, जो देश की कुल विकाल की यानी जीडीपी का 2.32 फीसदी है। 

भारत के विकास में टेंपल इकोनॉमिक जोन की भूमिका 

जर्नल ऑफ एशियन में में प्रकाशित एक रिसर्च में यूनिवर्सिटी ऑफ मिनिसोटा के प्रोफेसर बर्टन स्टीन कहते हैं कि भारत के इतिहास में सदियों से तीर्थस्थल और मंदिर महत्वपूर्ण इकोनॉमिक हब के रूप में रहे हैं। ये भारत के विकास में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। 

जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार में 150 किलो सोना 

1978 में जब लिस्ट बनाई गई थी, तब जगन्नाथ मंदिर के बैंक में 600 करोड़ रुपए का डिपॉजिट, रत्न भंडार में करीब 128 किलो सोना, 221 किलो चांदी मिला था। इसके अलावा, कई बेशकीमती आभूषण भी थे। इसके अलावा, भगवान जगन्नाथ के नाम पर ओडिशा में 60,426 एकड़ जमीन और दूसरे 6 राज्यों में 395.2 एकड़ जमीन दर्ज है। वहीं, ओडिशा हाईकोर्ट में मंदिर प्रशासन के हलफनामे के अनुसार, जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार में 149.47 किलो सोना और 198.79 किलो चांदी के गहने और बर्तन हैं।