नोटों पर फोटो की दिलचस्प कहानी
किसी देश की मुद्रा खामोशी से अपने प्रतीकों और छवियों के माध्यम से अपने इतिहास, संस्कृति और विरासत की कहानी कहती है।
किसी देश की मुद्रा खामोशी से अपने प्रतीकों और छवियों के माध्यम से अपने इतिहास, संस्कृति और विरासत की कहानी कहती है। दुनिया भर में, कई देश अपने संस्थापक नेताओं का सम्मान अपने नोट्स पर करते हैं: अमेरिका में जॉर्ज वॉशिंगटन, पाकिस्तान में मोहम्मद अली जिन्ना और चीन में माओत्से तुंग। भारत में, हमारे मुद्रा नोटों पर महात्मा गांधी हैं।
नए स्वतंत्र भारत में मुद्रा नोटों के लिए शुरुआत में गांधी की तस्वीर को अस्वीकार कर दिया था। लेकिन बहुत बाद में गांधीजी नोटों की शोभा बढ़ाने लगे। हालांकि यह स्वाभाविक लगता है कि राष्ट्रपिता के रूप में गांधी आजादी के बाद करेंसी नोटों पर छपने के लिए पहली पसंद होंगे, लेकिन वह पहली पसंद नहीं थे। तो, कौन था? कैसे गांधी भारतीय धन का चेहरा कैसे बने।
भारतीय रिज़र्व बैंक आरबीआई की वेबसाइट के अनुसार, औपनिवेशिक से स्वतंत्र भारत में मुद्रा प्रबंधन का परिवर्तन काफी सहज मामला था। 14 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि ने औपनिवेशिक शासन से भारतीय स्वतंत्रता की शुरुआत की। 1947 में आज़ादी के बाद से भारत के लोगों के हाथ में सत्ता तो आई लेकिन नोट वही पुराने वाले चलन में थे, जिन पर ब्रिटिश किंग का चित्र हुआ करता था। भारत के लोगों को नोटों पर अपने पराधीनता के निशान को मिटाने की ज़रूरत समझ आयी और आज़ादी के दो साल बाद 1949 में एक रूपए के नोट जारी हुए। जिन पर सबसे पहला चित्र महात्मा गाँधी का नहीं बल्कि वाराणसी के धार्मिक स्थल सारनाथ आया जो कि बुद्ध और जैन धर्म के भारत के प्रमुख स्थलों में से एक है।
इसके बाद तकरीबन 7-8 साल बाद, नोटों पर बाघों और हिरणों के चित्र छपने लगे। फिर इसके बाद हीराकुंड बाँध, आर्यभट्ट सैटेलाइट, ब्रहदीश्वर मंदिर इत्यादि की फोटो भी नजर आईं।
1969 में पहली बार महात्मा गाँधी की फोटो भारत के नोटों पर छपना शुरू हुईं, पर वह नहीं जिसे हम आज देखते हैं। सबसे पहले गाँधी जी की सेवाग्राम आश्रम में बैठे हुए फोटो नोटों के बैकग्राउंड पर छपी। 1987 में, जब जनता पार्टी सरकार द्वारा उच्च मूल्य के नोटों का विमुद्रीकरण करने के नौ साल बाद राजीव गांधी सरकार द्वारा 500 रुपये का मूल्य फिर से शुरू किया गया, तो नए रुपये पर गांधी का चित्र दिखाई दिया। पहली बार 500 का नोट, 1990 के दशक के मध्य तक, आरबीआई ने 1996 में महात्मा गांधी श्रृंखला शुरू की, जिसमें वॉटरमार्क और सुरक्षा धागे जैसी उन्नत सुरक्षा सुविधाएँ शामिल थीं। यह भारत के मुद्रा इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, क्योंकि गांधी भारतीय नोटों के सभी मूल्यवर्ग पर स्थायी चेहरा बन गए।
1996 में पहली बार गाँधी जी की वह फोटो छपी जो आज हम देखते हैं। आज़ादी के बाद से आज तक अन्य महापुरुषों जैसे की जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई, बीआर आंबेडकर पटेल, इत्यादि की फोटो भी नोटों पर छापने की मांग उठी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 2015 में बीआर अंबेडकर पर संस्मारक के रूप में 125 रुपये का एक गैर चलन योग्य नोट एवं 10 रुपये का सामान्य चलन के लिए एक सिक्का भी जारी किया गया था।