बच्चों में बढ़ते मोबाइल एडिक्शन को कम करने जरूरी है सख्त नियमों का लागू होना 

समर वैकेशन्स अभी भी जारी है। ऐसे में बच्चों का ज्यादा से ज्यादा समय ऑनलाइन गेमिंग में व्यतीत हो रहा है। एक बार बच्चे हाथ में मोबाइल लेकर बैठ जाए को उन्हें फिर किसी चीज की कोई जरूरत नहीं होती। पैरेंट्स बच्चों को मोबाइल से दूरी बनाए रखने के लिए विभिन्न गतिविधियों में आगे कर रहे हैं, लेकिन इन सब के बावजूद भी मोबाइल की आदत नहीं छूट पा रही है।

Jun 18, 2024 - 16:22
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बच्चों में बढ़ते मोबाइल एडिक्शन को कम करने जरूरी है सख्त नियमों का लागू होना 
necessary to implement strict rules to reduce the increasing mobile addiction in children

समर वैकेशन्स अभी भी जारी है। ऐसे में बच्चों का ज्यादा से ज्यादा समय ऑनलाइन गेमिंग में व्यतीत हो रहा है। एक बार बच्चे हाथ में मोबाइल लेकर बैठ जाए को उन्हें फिर किसी चीज की कोई जरूरत नहीं होती। पैरेंट्स बच्चों को मोबाइल से दूरी बनाए रखने के लिए विभिन्न गतिविधियों में आगे कर रहे हैं, लेकिन इन सब के बावजूद भी मोबाइल की आदत नहीं छूट पा रही है। टीनएजर्स में स्मार्टफोन एडिक्शन और ऑनलाइन गेमिंग आज के समय की चुनौती बन गई है। हाल ही में अमेरिका वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स के टॉप-20 देशों की सूची से बाहर भी इसी वजह से हुआ है क्योंकि वहां के टीनएजर्स ज्यादातर नाखुश पाए गए थे और उनमें स्मार्टफोन एडिक्शन ने बड़ी भूमिका निभाई थी। अब पीएलओएस मेंटल हेल्थ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि किशोरों में जरूरत से ज्यादा इंटरनेट इस्तेमाल करने से उनके दिमाग के उन हिस्सों पर असर पड़ता है जो ध्यान लगाने, नई चीजें सीखने, कुछ याद रखने और शारीरिक रूप से संतुलित रहने में मदद करते हैं। इससे उनकी पूरी तरफ से विकास और सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। 
2013 से 2022 के बीच 10 से 19 साल के 237 बच्चों पर रिसर्च की गई। इन बच्चों को डॉक्टर्स ने यह कहकर बीमार बताया था कि उन्हें इतनी ज्यादा इंटरनेट की आदत लग गई है कि ये उनकी सेहत, पढ़ाई और उनके भविष्य पर भी बुरा असर डाल रही है। वैज्ञानिकों ने पाया कि दिमाग के कुछ खास हिस्से मिलकर काम करते हैं, जिससे हम ध्यान लगा पाते हैं या सही फैसले ले पाते हैं। पर जिन बच्चों को इंटरनेट की लत थी, उनके दिमाग के इन हिस्सों में आपस में कम्युनिकेशन ठीक से नहीं हो रहा था। यानी दिमाग के वो हिस्से जो साथ मिलकर काम करने चाहिए वो एक दूसरे से बात नहीं कर पा रहे थे। 

मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से बढ़ा चिड़चिड़ापन

बच्चों के ज्यादा मोबाइल देखने और ऑनलाइन गेमिंग के कारण बच्चे काफी चिड़चिड़े होते जा रहे हैं। जब वे कोई गेम को खेलते है और जीतते हैं तो वे बहुत ज्यादा खुश हो जाते हैं, जैसे ही वे एक गेम हार जाते हैं, तो बहुत दुखी हो जाते हैं। गेम के जरिए उनका मूड बनता और बिगड़ता है। इतने ज्यादा मूड स्विंग्स के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन होने लगा है। ऑनलाइन एडिक्शन की वजह से डिप्रेशन और तनाव तो बढ़ ही रहा है इसके साथ बच्चों में सट्टे और ऑनलाइऩ गेमिंग की लत भी बढ़ रही है। बच्चों और युवाओं में ऑनलाइन गेमिंग और जुए की लत को कम करने के लिए भारत सरकार इन क्षेत्रों पर कुछ पाबंदियां लगाने की सोच रही है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार नए नियमों पर काम कर रही है, जिसके तहत ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत में समय और खर्च की सीमा का पालन हो रहा है। ऐसा करने के लिए उऩ्हें कोई न कोई तरीका अपनाना होगा। इसके लिए सरकार ने एसआरबी(सेल्फ रेगुलेटरी बॉडी) भी बनाई है। 

तय समय पर ही मोबाइल देना उचित 

भारत दुनिया के सबसे बड़े गेमिंग बाजारों में से एक है। देश में करीब 57 करोड़ लोग ऑनलाइन गेम खेलते हैं। इनमें से एक बड़ा हिस्सा, लगभग 25प्रतिशत इन गेम्स में पैसा लगाता है। लेकिन अब ऑनलाइन गेमिंग के मामले में भारत चीन के फॉर्मूले पर आगे बढ़ रहा है। चीन में बच्चों को गेम की लत से बचाने के सख्त नियम हैं। नवंबर 2019 में 18 साल से कम उम्र के बच्चों को रोजाना 90 मिनट से ज्यादा गेम खेलने पर रोक लगा दी गई थी। साथ ही सरकारी छुट्टियों में भी उन्हें सिर्फ 3 घंटे ही गेम खेलने की अनुमति थी। अगस्त 2021 में इन नियमों को और सख्त कर दिया गया। अब 18 साल से कम उम्र के बच्चे सिर्फ शुक्रवार, शनिवार, रविवार औप सरकारी छुट्टियों में वो भी सिर्फ 1 घंटे ही गेम खेल सकते हैं।