हिंदी पढ़ाओ, हिंदी बचाओ के उद्देश्य पर काम करना है जरूरी
हिन्दी हमारी मातृभाषा है, लेकिन वर्तमान समय में हमारी मातृ भाषा खतरे में है। यदि आपको हिन्दी आती है, तो आपको नौकरी मिलना मुश्किल है, क्योंकि हमारा देश हिन्दी प्रधान देश है, लेकिन यहां पर हिन्दी बोलने वालो को कोई खास महत्व नहीं दिया जाता।
हिन्दी हमारी मातृभाषा है, लेकिन वर्तमान समय में हमारी मातृ भाषा खतरे में है। यदि आपको हिन्दी आती है, तो आपको नौकरी मिलना मुश्किल है, क्योंकि हमारा देश हिन्दी प्रधान देश है, लेकिन यहां पर हिन्दी बोलने वालो को कोई खास महत्व नहीं दिया जाता। आलम यह है कि बच्चे की मां को यदि सिर्फ हिन्दी आती है, तो बच्चा अपनी मां को स्कूल ले जाने में कतराता है। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि मातृभाषा खतरे में है। वैसे तो हर साल 14 सितंबर 1953 को हिन्दी दिवस की शुरूआत इस भाषा को महत्व देने और लोगों तक इसे पहुंचाने के उद्देश्य के साथ की गई थी , लेकिन अब इसे बचाने के लिए इस दिवस को मनाया जा रहा है। हिन्दी भले ही लोगों की आम बोलचाल में इस्तेमाल हो रही हो, लेकिन हिन्दी आपका भविष्य तय करने में सक्षम नहीं है। हमें हिन्दी को प्रोत्साहित करने की जरूरत है, और इस दिशा में युवा पीढ़ी को एकजुट होकर अपनी मातृभाषा को आगे की पीढ़ियों तक ले जाना होगा।
इसलिए मनाया जाने लगा हिन्दी दिवस
हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। इसी दिन 1949 में संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में मान्यता दी थी। यह दिन भारत के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। यह हिंदी भाषा के महत्त्व को दर्शाता है। हिंदी दिवस न केवल हिंदी भाषा की प्रतिष्ठा का प्रतीक है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है।साल 1953 में, पहली बार 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया गया था। इसका उद्देश्य हिंदी भाषा के महत्व और प्रसार को बढ़ावा देना था। राजभाषा आयोग ने इस दिन को मनाने का विचार प्रस्तुत किया था। इसका उद्देश्य हिंदी को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित करना था। 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने हिंदी को देवनागरी लिपि में भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। 1953 से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार तो कर लिया गया, लेकिन अंग्रेजी का महत्व हिन्दी से कई गुना अधिक है।
साहित्यकारों ने बढ़ाया मान
देश के बड़े-बड़े साहित्यकारों के साथ ही शहर के साहित्यकारों ने हिन्दी की लाज बचाए रखी है। वजह है कि उनके लिए आज भी हिन्दी ही सर्वोच्च भाषा है। जिसकी रचनाएं खूबसूरत भाषा से सजी हैं। साहित्यकार सुरेश विचित्र ने बताया कि यदि हिन्दी को सही महत्व दिया जाए, तो अपनी भावनाओं को बयां करने के लिए इससे बेहतर कोई और भाषा हो ही नहीं सकती। वर्तमान समय में हमें हिन्दी पढ़ाओ, हिन्दी बचाओ पर काम करना चाहिए।