जबलपुर लोकसभा चुनाव: कांग्रेस के नेताजी को नहीं चाहिए टिकट!

समय का फेर है कि एक वो वक्त था, जब कांग्रेस की टिकट के लिए नेता सब कुछ करने को तैयार थे, लेकिन, एक वक्त आज है जब नेता अपना ही टिकट कटवाने के लिए जोर लगा रहे हैं।

Mar 15, 2024 - 16:44
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जबलपुर लोकसभा चुनाव: कांग्रेस के नेताजी को नहीं चाहिए टिकट!
Jabalpur Lok Sabha Elections: Congress leader does not want ticket!

कांग्रेसी अपना टिकट कटवाने राजधानी से राजधानी तक लगा रहे जोर

समय का फेर है कि एक वो वक्त था, जब कांग्रेस की टिकट के लिए नेता सब कुछ करने को तैयार थे, लेकिन, एक वक्त आज है जब नेता अपना ही टिकट कटवाने के लिए जोर लगा रहे हैं। मजेदार ये है कि खुद का टिकट कटवाना भी मुश्किल हो रहा है। बदलती सियासी तस्वीर और उससे उपजे समीकरणों ने हैरतअंगेज बदलाव खड़े कर दिये हैं। जबलपुर के कई कांग्रेसी नेताओं ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक बहुत आग्रहपूर्वक ये खबर भेजी है कि वो चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। विधानसभा में करारी शिकस्त और लोकसभा में हार का डर ये सब नतीजे लेकर आया है। 

-शुरू किसने किया
सबसे पहले राज्य सभा सांसद विवेक तन्खा ने कहा था कि वे अब कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे। वजह जो भी रही हो पर श्री तन्खा का इनकार सबसे पहले आया था। इसके बाद दूसरे राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने भी चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया था। हालांकि, श्री सिंह ने भविष्य की राह खोल रखी है। जब मुकाबला  कड़ा हो और तभी दिग्गज नेता कदम पीछे खींच लें तो इसका आशय क्या होगा, ये सहज ही समझा जा सकता है। यहीं से शुरू हुआ इनकार का सिलसिला, जो बढ़ता ही जा रहा है। 

-कई नाम, राजी कोई नहीं
जबलपुर से तरूण भानोत, विनय सक्सेना, अंजु भार्गव, दिनेश यादव, सौरभ शर्मा, सत्येंद्र यादव समेत कई नाम चर्चा में हैं पर कोई राजी नहीं है। कुछ एक नाम हैं, जो टिकट लेने तैयार हैं पर उन्होंने कुछ शर्तें भी पार्टी के सामने रख दी हैं। पार्टी शर्तों पर विचार कर रही है। पहले खबर थी कि पैनल में दो नाम आ चुके हैं,लेकिन, बाद में नए नाम आ गए और अब कुछ भी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता। ताजा खबर ये भी है कि राहुल गांधी की न्याय यात्रा चूंकि मध्यप्रदेश से जा चुकी है इसलिए अब टिकटों का ऐलान किया जाएगा। 

-सिर्फ हार का डर या कुछ और
चुनाव में हार-जीत होती ही है और कांग्रेसी सिर्फ हार के डर से टिकट से कन्नी काट रहे हों,ऐसा नहीं है। असल में कांग्रेस नेता अच्छे से जानते हैं कि यदि टिकट ले ली तो पूरा चुनाव अकेले ही लड़ना पड़ेगा। अव्वल तो पार्टी के पास संगठन का ढांचा ही नहीं है तो दूसरे, नेता भी ऐन मौके पर साथ नहीं आते। ऐसा एक नहीं, कई चुनावों में प्रमाण सहित देखा-सुना गया है। साधन-संसाधनों की बात करें तो बहुत कमी नहीं है और कोशिश करके इंतजाम जुटाए भी जा सकते हैं पर अकेले चुनाव लड़ना कोई भी नहीं चाहता।