जबलपुर कलेक्टर की कार्रवाई गलत...100 करोड़ का देना होगा हर्जाना
भारतीय शैक्षिक प्रकाशक संघ ने कलेक्टर (Jabalpur collectors) की कार्रवाई को गलत ठहराया, कलेक्टर के नोटिस के जवाब में पत्र लिखकर रखा अपना पक्ष
जबलपुर डेस्क, त्रिकाल न्यूज। जबलपुर में हुई निजी स्कूलों और प्रकाशकों पर कार्रवाई की चौतरफा चर्चाएं रहीं। अभिभावकों से लेकर आम नागरिकों तक ने दिल खोलकर जबलपुर कलेक्टर की तारीफों के पुल बांधे। इस कार्रवाई में कई लोगों पर एफआईआर हुई और जमानत नहीं मिलने पर वो अभी भी जेल में हैं। यहां तक सबकुछ ठीक था। लेकिन इसी बीच दिल्ली के भारतीय शैक्षिक प्रकाशक संघ के लैटर ने भूचाल मचा दिया। द त्रिकाल मीडिया के पास वो लैटर मौजूद है।
जिसमें प्रकाश संघ जबलपुर कलेक्टर की इस कार्रवाई को गलत बता रहा और कलेक्टर से 100 करोड़ रुपए हर्जाने के रूप में वसूलने की बात कर रहा है। भारतीय शैक्षिक प्रकाशक संघ ने जबलपुर कलेक्टर की कार्रवाई को गलत ठहराया। जबलपुर कलेक्टर के 30 मई को प्रेषित पत्र के जवाब में पत्र लिखकर कुछ महत्वपूण बिंदुओं पर ध्यान आकर्षिक कराया है।
संघ के भेजे जवाबी पत्र के अनुसार, किताबें के आईएसपीएन (इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बुक नम्बर) राजा राममोहन रॉय नेशनल एजेंसी मॉनिटर करती है। इस नम्बर को प्रकाशक अपने स्तर पर नहीं छाप सकते हैं। आईएसबीएन का ऑनलाइन पोर्टल पर अप्रैल 2016 से रिकॉर्ड मौजूद है। जब आईएसबीएन का ऑनलाइन पोर्टल सुचारू रूप से संचालित होता था। अप्रैल 2016 से पहले आईएसबीएन नम्बर मैनुअल इश्यू किया जाता था। जो पूरी तरह वैद्य था।
दरअसल आईएसबीएन अथॉरिटी नियमानुसार नम्बर आवंटित करता था। किताबों पर अंकित आईएसबीएन नम्बरों को लेकर बड़ी गलतफहमी है कि ये क्वालिटी और कीमत के लिए अधिकृत हैं और अगर पोर्टल पर न दिखे तो ये फर्जी और डुप्लीकेट हैं। जबिक सच तो ये है कि ये आईएसबीएन नम्बर सिर्फ पहचान, सूची बनाने और सहेजने में मदद करता है। इसके अलावा ये आईएसबीएन नम्बरों को कोई एक्पायरी डेट नहीं होती। ये तमाम जानकारियां सच हैं इसके लिए भारत शासन के उच्च शिक्षा विभाग की वेबसाइट का अवलोकन किया जा सकता है।
क्या आईएसबीएन नम्बर जरूरी है...
इस सवाल के जवाब में संघ ने पत्र में बताया कि किताबों में आईएसबीएन नम्बर डालना ही है, ऐसा अंतर्राष्ट्रीय आईएसबीएन सिस्टम का कोई नियम नहीं है। इसके अलावा आईएसबीएन नम्बर राजा राममोहन रॉय नेशनल एजेंसी के पोर्टल में आसानी और निशुक्ल उपलब्ध हैं। इसलिए प्रकाशन इतनी बड़ा निवेश कर ऐसे फर्जी नम्बरों को लेने में इतने उत्साहित नहीं रहते।
अंतर्राष्ट्रीय आईएसबीएन प्रणाली आईएसबीएन रखने के लिए कोई कानूनी आवश्यकता नहीं लगाती है, और आईएसबीएन कोई कानूनी या कॉपीराइट सुरक्षा नहीं देता है। इसके अलावा, आईएसबीएन राजा राम मोहन रॉय राष्ट्रीय एजेंसी के पोर्टल से आसानी से और मुफ्त उपलब्ध हैं। इसलिए, पुस्तक के निर्माण और प्रकाशन पर बड़ी राशि खर्च करने के बाद प्रकाशक के पास डुप्लिकेट आईएसबीएन बनाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि आईएसबीएन केवल पुस्तकों की पहचान और ऑनलाइन पद्धति के माध्यम से इसकी बिक्री और निर्यात के उद्देश्यों के लिए है। यह वांछनीय है कि प्रकाशक के पास उल्लेखित आईएसबीएन हो। हालाँकि, कहा गया कि आईएसबीएन किसी भी कानून के तहत अनिवार्य आवश्यकता नहीं है। इसलिए, पूर्वोक्त से यह स्पष्ट है कि शैक्षिक पुस्तकों के प्रकाशकों के खिलाफ आईएसएचएन नंबरों की पूरी गलतफहमी पर पूरी जांच शुरू की जा रही है,
जिस उद्देश्य के लिए इन्हें पेश किया गया था। इसलिए, हम अनुरोध करेंगे कि कलेक्टर जबलपुर द्वारा शुरू की गई पूरी जांच/जांच और पुस्तकों के प्रकाशकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना आईएसबीएन संख्याओं के अर्थ और उद्देश्य की गलत समझ पर आधारित है। अत: शैक्षिक प्रकाशकों के विरुद्ध कार्रवाई बंद करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करने का अनुरोध है।
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