जबलपुर के नाम है संविधान के अलंकरण का श्रेय
शहर के मशहूर चित्रकार रहे व्यौहार राम मनोहर सिंहा ने भारतीय संविधान का अलंकरण किया है। इनके ही चित्रों की वजह से भारतीय संविधान को विश्व का सबसे सुंदर संविधान माना जाने लगा। महज 22 साल की उम्र में व्यौहार राम मनोहर सिंहा ने भारतीय संविधान जैसे बड़े कार्य के लिए अपना योगदान दिया। भारतीय संविधान की मूलप्रति के प्रथम पृष्ठ में भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरोहरों को व्यक्त करते प्रतीकों के चित्रों को शामिल किया गया।
शहर के मशहूर चित्रकार रहे व्यौहार राम मनोहर सिंहा ने भारतीय संविधान का अलंकरण किया है। इनके ही चित्रों की वजह से भारतीय संविधान को विश्व का सबसे सुंदर संविधान माना जाने लगा। महज 22 साल की उम्र में व्यौहार राम मनोहर सिंहा ने भारतीय संविधान जैसे बड़े कार्य के लिए अपना योगदान दिया। भारतीय संविधान की मूलप्रति के प्रथम पृष्ठ में भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरोहरों को व्यक्त करते प्रतीकों के चित्रों को शामिल किया गया। इसके साथ ही कई अन्य चित्रों को भी भारतीय संविधान की मूलकृति में स्थान मिला। जिन चित्रों को संविधान में स्थान नहीं मिल पाया है। उन्हें शहर में स्थित शहीद स्मारक प्रेक्षागृह की दिवारों पर जगह मिली।
श्रेय लेने से किया इंकार
शहर का व्यौहार वंश काफी पुराना है। इनकी बदलती पीड़ियों ने इतिहास को करीब से जाना है। भारतीय इतिहास और जबलपुर का संविधान के अलंकरण में राम मनोहर सिंहा का प्रत्यक्ष और व्यौहार राजेन्द्र सिंहा का परोक्ष रूप से योगदान रहा है।1935 में जबलपुर में ही डॉ.राजेन्द्र प्रसाद, काका कालेकर, व्यौहार राजेन्द्र सिंहा ने एक चर्चा के दौरान कहा था कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को जन-जन तक चित्रों के माध्यम से पहुंचाया जाए।
वर्तमान संविधान का निर्माण हो रहा था। डॉ.राजेन्द्र संविधान सभा के अध्यक्ष थे। तब उन्हें उस चर्चा की याद आई और उन्होंने संविधान को अलंकृत किए जाने की बात कही। उन्होंने शांतिनिकेतन के वयोवृद्ध चित्रकार नंदलाल बसु जो कि लगभग 70 वर्ष के थे। उन्हें चित्र बनाने की जिम्मेदारी सौंपी। इन्होंने यह कार्य व्यौहार राम मनोहर सिंहा को सौंप दिया और भारत भ्रमण कर चित्र तैयार करने को कहा। यह काफी बारीक काम था। जिसे राम मनोहर सिंहा ने बड़ी ही खूबसूरती के साथ किया और उसमें अपने हस्ताक्षर भी नहीं किए।
नंदलाल बसु इस पर काफी नाराज हुए और उन्होंने राम मनोहर सिंहा से कहा कि मैं इसे स्वीकार नहीं करता। तुम्हें इस पर अपने हस्ताक्षर करने होंगे। यह देश के लिए तुम्हारा योगदान है। तब राम मनोहर सिंहा ने मूलप्रति के प्रस्तावना पृष्ठ पर दाएं तरफ चित्रों के ही बीच राम लिख दिया।
सात प्रतीकों के हैं अलग-अलग मायने
नवोदित गणराज्य वृषभ का प्रतीक है। पृष्ठ के ऊपरी बाएं कोने में वृषभ है। वृषभ यानी धैर्यवान और साधुवत, ऊपरी दाएं कोने पर गज है जो की संविधान को उच्च बौद्धिक स्तर का बताता है। नीचे के हिस्से के दाएं कोने में बाघ का होना प्रतीक है कि हमारा संविधान निर्भीक और संप्रभुता संपन्न होगा। बाएं कोने पर अश्व का होना दर्शाता है कि संविधान गति और शक्ति से परिपूर्ण है, मोर सुचिता का प्रतीक है, हंस नैतिकता का प्रतीक है, पद्य प्रतीक है नव सृजन का। इस प्रकार से व्यौहार राम मनोहर सिंहा ने सिर्फ अलंकरण का कार्य नहीं किया, बल्कि लोगों के बीच भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरोहरों को खूबसूरती से प्रस्तुत किया।
शांतिनिकेतन में भी सुरक्षित रखी गई है संविधान की मूलप्रति
भारतीय संविधान की मूलप्रति के अलंकरणकर्ता व्यौहार राममनोहर सिंहा पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में आचार्य नन्दलाल बसु के प्रिय वरिष्ठ अनुयायी थे। संविधान का अलंकरण शांतिनेकतन में हुआ था। इसलिए दिल्ली के अलावा संविधान की एक प्रति शांतिनिकेतन में भी सुरक्षित रखी गई है। वर्तमान में स्व.राममनोहर सिंहा के पुत्र डॉ.अनुपम सिंहा और उनकी पत्नी संगीत सिंहा शांतिनेकतन में रहकर संविधान की उस मूलप्रति के विषय में संरक्षण और अनुसंधान में अपना योगदान दे रहे हैं।