कारगिल विजय दिवस के दिन को कभी नहीं भूलते जबलपुर वासी

करगिल युद्ध में जब सैनिक पाकिस्तान के साथ मुठभेड़ कर रहे थे। तब जबलपुर शहर से गोला, बारूद से लेकर बोफोर्स तोप, सैन्य वाहन उनकी कमी को पूरा कर रहा था। सशस्त्र बल के साथ आयुध सप्लाई में इस शहर ने अहम भूमिका निभाई है।

Jul 26, 2024 - 14:24
Jul 26, 2024 - 17:11
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कारगिल विजय दिवस के दिन को कभी नहीं भूलते जबलपुर वासी
Jabalpur residents never forget Kargil Vijay Diwas

26 जुलाई करगिल विजय दिवस 

करगिल युद्ध में जब सैनिक पाकिस्तान के साथ मुठभेड़ कर रहे थे। तब जबलपुर शहर से गोला, बारूद से लेकर बोफोर्स तोप, सैन्य वाहन उनकी कमी को पूरा कर रहा था। सशस्त्र बल के साथ आयुध सप्लाई में इस शहर ने अहम भूमिका निभाई है। करगिल युद्ध विजय दिवस इस शहर के लिए बेहद खास दिन है। क्योंकि इस शहर की भी कई माएं अपने बेटों के लौटने का इंतजार महीनों से कर रही थीं। जी हां करगिल युद्ध में शहर के कई सैनिक शामिल थे। इतना ही नहीं यहां से जाने वाले सैन्य वाहनों को चलाने वाले भी इस घटना के साक्षी बने थे। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि किस तरह से एक-एक दिन उनके लिए कठिन होता था। विपरीत परिस्थितियों में सिर्फ देशभक्ति को ही याद रखा और इस युद्ध में अपना योगदान दिया। युद्ध के दौरान मन में सिर्फ विजय का ही ख्याल आता था। उस समय सोशल मीडिया नहीं हुआ करता था। लोग घंटों टीवी के सामने बैठकर अपनों की खैर खबर लेते थे और उनके फोन आने का इंतजार करते थे। तीनों सैन्य प्रशिक्षण केंद्रों से प्रशिक्षण लेकर युद्ध के मैदान में सैनिकों ने शौर्य का प्रदर्शन किया। दूसरी तरफ आयुध निर्माणियां किसी स्तर पर पीछे नहीं रहीं। उनमें दिन-रात उत्पादन हुआ। गोला-बारूद हो या बोफोर्स तोप या फिर सैन्य वाहन, इनकी कमी नहीं होने दी। 25 साल पहले के योगदान को आज भी कर्मचारी और सैनिक नहीं भूलते।

देश में मचे हड़कंप के बीच ऐसे दिया योगदान

वर्ष 1999 में हुई इस लड़ाई के लिए रेल और सड़क मार्ग से गोला-बारूद सप्लाई होते थे। आयुध निर्माणी खमरिया, वीकल फैक्ट्री जबलपुर , गन कैरिज फैक्ट्री और ग्रे आयरन फाउंड्री (अब ऑर्डनेंस फैक्ट्री जबलपुर) में 24 घंटे उत्पादन होता था। पूर्व कर्मचारियों ने बताया कि खमरिया में तो कुछ सेक्शन ऐसे थे जहां एक पल भी उत्पादन नहीं रुकता था। कर्मचारी दो से चार दिन तक घर नहीं आते थे। यही हाल दूसरी आयुध निर्माणियों का था।

पनेहरा रेलवे यार्ड में टैंक और तोप

ऑर्डनेंस डिपो (सीओडी) से मालगाड़ी के जरिए युद्ध सामग्री भेजी जाती थी। पनेहरा के पास यार्ड में तोप, टैंक से लेकर वाहन और दूसरी सामग्री लादे मालगाड़ी खड़ी रहती थी। उसे देखने के लिए लोग रुक जाते थे। वहीं सड़क मार्ग से भी एक्सप्लोसिव वीकल दिन-रात निकलते थे। वीकल फैक्ट्री से एलपीटीए और स्टालियन वाहन बड़ी संख्या में भेजे जाते थे। इसी प्रकार गन कैरिज फैक्ट्री से बोफोर्स तोप भेजी जाती थी। इस तोप ने युद्ध में बड़ी भूमिका अदा की थी। दुश्मन जब चोटी पर बैठकर हमला करता था, तब इस तोप से निकला गोला उन्हें पीछे करने के लिए मजबूर कर देता था। इसी प्रकार एयरफोर्स के लिए कई प्रकार के बम यहां से भेजे गए।

बनाया गया युद्ध स्मारक

जबलपुर में दि ग्रेनेडियर्स रेजीमेंटल सेंटर की युद्ध में अहम भूमिका रही। परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव इसी रेंजीमेंट से हैं। उनकी बहादुरी के किस्से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। किस तरह सीने पर गोली खाकर भी उन्होंने दुश्मन को आगे नहीं बढ़ने दिया। जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स रेजीमेंट के कैप्टन विक्रम बत्रा और दूसरे अधिकारी व सैकड़ों जवानों ने अपनी आहूति दी। वहीं वन सिग्नल ट्रेनिंग सेंटर के जवानों ने संचार के काम में अहम भूमिका निभाई। युद्ध की समाप्ति के बाद जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स रेंजीमेंट सेंटर में युद्ध स्मारक बनाया गया। हर साल 26 जुलाई को विजय दिवस पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।