कल की चिंता किए बिना वर्तमान में जिए काशीनाथ

Dec 10, 2024 - 13:00
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कल की चिंता किए बिना वर्तमान में जिए काशीनाथ

.........और काशीनाथ जी सदा के लिए चले गए। वे अब हमारे बीच कभी नहीं आएँगे। पत्रकार काशीनाथ शर्मा पूरा नाम है लेकिन सिर्फ काशीनाथ से पहचान थी। किसी के लिए पंडित काशीनाथ तो किसी के लिए "गुरु"...। खांटी समाजवादी पत्रकार... सच लिखना और खरा बोलना आदत थी। वेतन समय पर नहीं मिला तो एक अख़बार से नौकरी छोड़ दी क्योंकि बच्चों की फीस भरने दिया चेक बाउंस हो गया था। वे वर्तमान में जीने के आदी रहे, कल की चिंता कभी नहीं की।

तकनीक को अपनाया 

    वे एक ऐसे दौर के पत्रकार थे जिन्होंने तकनीकी रूप से पत्रकारिता को बदलते देखा है। उस तकनीक के साथ अपने को बदला,उसमें ढाला और देश प्रदेश में अपनी अलग छाप छोडी। हम सब ने न्यूज प्रिंट के कागज पर कलम से लिखते देखा। कम्प्यूटर पर पेज मेकिंग कराते थे।फिर खबर को टाइप करने में नहीं हिचके। अब मोबाइल पर संदेश भेजने में माहिर थे। हिंदी फांट कृति से यूनिकोड में लेख को कन्वर्ट स्वयं करते थे। 

बागी तेवर 

    कम ही लोगों को पता होगा। वे सुरक्षा संस्थान के कर्मचारी रहे। लेकिन सरकारी नौकरी रास नहीं आयी। इस्तीफा दिया और लग गए छात्र राजनीत में। कर्मचारियों के साथ वामपंथी और छात्रों के बीच समाजवादी रहे। पत्रकार बने तो हक की लड़ाई में पीछे नहीं रहे। बड़े संस्थान से बगावत की उससे उनका व्यक्तिगत अहित हुआ। एक योग्य पत्रकार होते हुए बड़े संस्थान में नहीं जा सके।

खरीदकर पढ़ने की आदत

       एक पढ़ने लिखने वाले पत्रकार के तौर पर काबिल थे। उनको किताब पढ़ने की आदत थी। वह भी खरीद कर...। उनकी अपना संकलन हैँ। पुस्तक माँगने पर नाराज भी होते थे। काशीनाथ जी को धर्म,संस्कृति, साहित्य, इतिहास, राजनीत और कला का अदभुत ज्ञान था। स्मरण शक्ति भी थी। पढ़ने के बाद भूलते नहीं थे। 

गाँधी लोहिया के अनुयायी 

.       गाँधी लोहिया और नेहरू में रूचि थी उनके विचार से प्रभावित भी थे। विचार और कर्म में प्रभाव भी दिखता था। जातिगत भेदभाव और कट्टरपंथी धर्म के घोर विरोधी रहे। उनके सहयोगी हर जात और धर्म के रहे। अनेक युवाओं को पत्रकार बनाने में भी सहयोग किया,मौके दिए।

ओशो पीठ बनवाना चाहते थे 

    आचार्य रजनीश के विचार से सहमत थे। ओशो को लगातार पढ़ते भी थे। रानी दुर्गावती विश्व विद्द्यालय में ओशो पीठ स्थापित कराना चाहते थे। एक अख़बार के कार्यालय में ओशो का संदेश भी मढ़ा कर रखा था, अख़बार व्यवसाय नहीं क्रांति हो....। 

शरद यादव से जुड़े 

 1974 से ही समाजवादी विचारधारा से प्रभावित होकर प्रख्यात छात्र नेता शरद यादव से जुड़ गए थे और उनके चुनाव में खुलकर काम किया। इसके बाद लगातार व्यवस्था विरोध में कांग्रेस सरकार के खिलाफ आंदोलन किए। तभी से आरएसएस और वामपंथी नेताओं से निकटता हो गई। यह अलग बात है कि आज व्यवस्था विरोध अब अवगुण बना दिया गया, जिसको लेकर काशीनाथ हमेशा व्यथित रहते थे। वे लोकतंत्र में बदले की राजनीत से भी दुखी थे। 

सुंदर राइटिंग प्रभावित करती थी 

छात्र राजनीत में सक्रिय रहने से प्रशासन की आँख में खटकने लगे थे। अख़बार में प्रेस नोट हाथ से लिखकर भेजते थे, राइटिंग शानदार थी। टाइपिंग के समान। इसी बीच जबलपुर से एक बड़ा अख़बार आरम्भ हुआ, जहाँ वरिष्ठ पत्रकार अजित वर्मा स्थानीय संपादक बने उन्होंने काशीनाथ जी को अवसर दिया। यहीं से पत्रकार रम्मू श्रीवास्तव और प्रदीप पंडित का साथ मिला। उसके बाद शहर के अनेक अख़बार में सेवाएं दीं। 

न्यूज चैनलो से भी जुड़े रहे 

         ज़ब सहारा ग्रुप ने न्यूज चैनल शुरू किया तो जबलपुर के ब्यूरो चीफ बनकर नए आयाम स्थापित किए। उनका सहारा छोड़ने और इस्तीफा देने की कहानी है। किसी तरह का समझौता करने को तैयार ही नहीं थे। इसके बाद भोपाल में स्टेट हेड बने। अभी त्रिकाल डिजिटल मीडिया में एडिटर थे। वे एक ऐसे पत्रकार हैं जिन्होने आधुनिक युग के सभी फार्मेट में काम किया है। 

हमेशा परिवार ने संघर्ष किया 

       पत्रकार काशीनाथ का जाना हम सबको खलेगा। सबकी अपनी अपनी यादें हैं। जिनको भूल पाना नामुमकिन है। वे हमेशा बोलने बताने बहस करने की आजादी देते थे। उनका सूत्र वाक्य था जिन्दा न्यूज रूम में शोरगुल होना ही चाहिए। सबके मत जानना उनकी आदत थी। अब सिर्फ यादें हैं। किस्से कहानी अनन्त हैं लेकिन पीड़ा सबको है। उनकी कमी सबको खलेगी। वास्तविक संघर्ष तो परिवार ने किया है। सच और खरा बोलने की आदत के परिणाम बच्चों और पत्नी ने जीवन भर झेले हैं। पहले भी संघर्ष किया और अब उनका नया संघर्ष फिर शुरू हो गया। ईश्वर परिवार को संबल दे यही प्रार्थना है। हम सब उनके साथ हैं। (रवीन्द्र दुबे)