कश्मीर हमारा है... कहना नहीं, बताना होगा
पहलगाम की घटना के बाद से कई बार लिखने का मन हुआ, हर बार यही लगा क्या लिखें मन बड़ा व्यथित है।

रविन्द्र दुबे, वरिष्ठ पत्रकार
पहलगाम की घटना के बाद से कई बार लिखने का मन हुआ, हर बार यही लगा क्या लिखें? मन बड़ा व्यथित है। जिस परिवार में 16 अप्रैल को विवाह की खुशियाँ छाई थी वहां 22 अप्रैल की शाम मातम पसरा था। उस बेटी के बारे में सोचिए जिस की मांग मात्र 6 दिन बाद ही सूनी हो गई....उनका क्या दोष था? आतंकियों ने एक ऐसी वारदात कर दी जो सभ्य समाज के माथे पर कलंक है। ऐसे अनेक परिवार हैं जिन्होने अपनों को सदा के लिए खो दिया है। कई के ज़ख्म सदा-सदा के लिए शरीर पर हैं जब भी दर्द होगा या उनको देखेंगे तो रूह कांप जाएगी.... न भूलने वाली घटना आँखों के सामने आ जाएगी। उन सबके लिए संवेदना है।
यह घटना कुछ इशारा भी कर रही है। जम्मू कश्मीर और केंद्र सरकार की कोशिश का ही नतीजा है आज कश्मीरी जनता हिंदुस्तान के साथ है। घटना के विरोध में जम्मू कश्मीर का ऐतिहासिक बंद होना, कुछ आशा जगा रहा है। मीडिया या कुछ लोगों ने जिस तरह से घटना को हिंदू-मुसलमान से जोड़ा उससे आम कश्मीरी आहत है। वह मीडिया से बहस कर रहा है। आम जनता यह बताने की कोशिश कर रही है 28 लोगों की मौत दुःखद है उसकी निंदा हो, दोषी पर कार्रवाई हो लेकिन जिन 2700 से ज्यादा लोगों को कश्मीरी आवाम ने बचाया है,उसकी भी चर्चा हो।
यह पहली बार दिख रहा जब जनता को व्यापार और रोजगार की चिंता सता रही है। कश्मीर के विकास के साथ जिस तरह से 20-25 लाख टूरिस्ट कश्मीर पहुंच रहा है, उससे उनको अपना भविष्य दिख रहा है। कश्मीरी और कश्मीरियत की चर्चा खुलकर हो रही। यह भी बताया जा रहा सोनमर्ग और रामवन में हुई प्राकृतिक आपदा के बाद लोगों ने अपने घर हिंदुस्तानियों के लिए खोले थे। आवाम आतंकवाद और आतंकियों के खिलाफ बयान दे रहे हैं। कैण्डल मार्च श्रीनगर और पहलगाम में निकाले गए। यह आतंक व आतंकियों की जड़ों पर चोट है।
केंद्र और जम्मू कश्मीर सरकार को इस बेहतरीन मौके का उपयोग करना चाहिए। यह मोदी सरकार की उपलब्धि है। कश्मीर के अलगवाद के साथ कभी भी भारतीय मुस्लिम नहीं दिखा,अब भी नहीं है। घटना के बाद देश में भी वोट के लिए हिंदू मुसलमान बंद होना चाहिए। इसे रोकने के लिए सरकार को आधिकारिक बयान भी जारी करना चाहिए।