Maha Kumbh 2025: महाकुंभ 2025 में किन्नर अखाड़े ने की शिरकत
किन्नरों को समाज में आज भी एक अलग नजरिए से देखा जाता है, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप से ही किन्नरों की परिकल्पना का जन्म हुआ और भगवान शिव ही किन्नरों को लेकर आए।

किन्नरों को समाज में आज भी एक अलग नजरिए से देखा जाता है, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप से ही किन्नरों की परिकल्पना का जन्म हुआ और भगवान शिव ही किन्नरों को लेकर आए। किन्रर एक ऐसा स्वरूप जिसमें वे न तो पूर्ण रूप से पुरुष होते हैं और न ही पूर्ण रूप से स्त्री होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट से किन्नरों के हक में एक निर्णय आने के बाद ही किन्नरों की जिंदगी बदल गई। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद 2015 में महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने फैसला किया कि सनातन धर्म के साथ जुड़कर एक किन्नर अखाड़े की शुरूआत की जाए। आदि शंकराचार्य के पद चिन्ह पर चलकर सनातन धर्म को विश्व भर में पहुंचाया जाए। इसी सोच के साथ 13 अक्टूबर 2015 को किन्नर अखाड़े का निर्माण किया गया।
किन्नर अखाड़े ने पहली बार 2016 में उज्जैन में हुए सिंहस्थ में शिरकत की। वहीं 2019 में जूना अखाड़े के साथ मिलकर किन्नर अखाड़ा भी प्रयागराज में अर्ध कुंभ में शामिल हुआ। 2021 में हरिद्वार के कुंभ में भी शामिल हुआ था। अब जब किन्नरों ने संतों के बीच अपनी भी एक अलग पहचान बना ली है और उन्हें भी सम्मान मिलने लगा है। तो किन्नर अखाड़ा बेहद खास हो गया है।
महाकुंभ में फिर पहुंचा किन्नर अखाड़ा
किन्नर अखाड़ा लगातार अपनी पहचान स्थापित कर रहा है। 2019 में प्रयागराज में हुए अर्धकुंभ के बाद अब 2025 में होने जा रहा रहे महाकुंभ का हिस्सा बनने जा रहा है किन्नर अखाड़ा। यहां पर आने वाले सभी प्रमुख अखाड़ों के साथ ही किन्नर अखाड़े की भी अपनी अलग पहचान है। जिसका सभी संत सम्मान कर रहे हैं।
शैव संप्रदाय से जुड़ा है किन्नर अखाड़ा
महाकुंभ में आने वाले तमाम 13 अखाड़े अलग-अलग संप्रदाय से जुड़े हैं। इसमें 7 अखाड़े शैव संप्रदाय के हैं, तो 3 वैष्णव संप्रदाय के। तीन अखाड़े उदासीन है। किन्नर अखाड़े के संत शैव संप्रदाय से जुड़े हैं। उनके इष्ट देवता अर्धनारीश्वर शंकर भगवान है। जिनकी पूजा के बाद ही वे कोई भी कार्य करते हैं।