जानिए...मैहर को क्यों कहा जाता है माई का हार, माँ शारदा मंदिर से कैसे जुड़ी है आल्हा उदल की कहानी 

Jul 21, 2024 - 16:34
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जानिए...मैहर को क्यों कहा जाता है माई का हार, माँ शारदा मंदिर से कैसे जुड़ी है आल्हा उदल की कहानी 

द त्रिकाल डेस्क। सतना जिले के मैहर में स्थित मां शारदा का मंदिर विंध्य पर्वत की श्रेणियों के बीच त्रिकुट पर्वत पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहां मां शारदा की सबसे पहले पूजा आदि गुरू शंकराचार्य ने की थी। विंध्य के त्रिकुट पर्वत का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। नवरात्रि के समय में हर दिन यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, लेकिन अब इस मंदिर में आम दिनों में भी काफी भीड़ होने लगी है। भक्तों की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए यहां पर रोपवे की सेवा भी शुरू की गई है ताकि लोग माँ के दर्शन कर सकें। यहां के खूबसूरत नज़ारे सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुचें और माँ का आशीर्वाद लिया। इस मंदिर में श्रद्धालुओं को 1052 सीढ़ी चढ़कर जाना पड़ता है।
मैहर में गिरा था मां सती का हार
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में मां सती का हार गिरा था, जिसकी वजह से इस जगह का नाम माई का हार पड़ गया, लेकिन अपभ्रंश होकर इसका नाम मैहर हो गया। मां सती का हार गिरने की वजह से इस अंग को मैहर के नाम से जाना जाता है।
जानिए किसने की थी मंदिर की खोज
त्रिकुट की पहाड़ी पर स्थित मां शारदा के मंदिर की खोज आल्हा उदल के नायक दो सगे भाई ने की थी। कहा जाता है कि आल्हा और उदल मां शारदा के अनन्य भक्त थें, इन्होंने जंगलों के बीच त्रिकुट पर्वत की चोटी पर इस मंदिर को ढूंढ़ निकाले थें। वर्तमान में यह मंदिर आस्था का केंद्र बन चुका है। अब यहां देश-विदेश के कोने-कोने से मां के दर्शन के लिए आते हैं।
आज भी आल्हा द्वारा की जाती है पूजा
इस मंदिर की खोज के बाद आल्ह उदल ने यहां 12 वर्षों तक कठोर तपस्या कर देवी मां को प्रसन्न किया था। मां ने आल्हा की तपस्या से खुश होकर उन्हें अमरता का वरदान दे दिया। मां शारदा देवी के मंदिर में आल्हा की कुल देवी फूलमती माता का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि यहां आज भी हर दिन ब्रम्ह मुहुर्त में आल्हा खुद आकर मां की पूजा अर्चना करते हैं। मां के मंदिर की तलहटी में आल्हा देव की खड़ाऊ और तलवार आम भक्तों के लिए रखी गई है।

Matloob Ansari मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर से ताल्लुक, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से पत्रकारिता की डिग्री बीजेसी (बैचलर ऑफ जर्नलिज्म) के बाद स्थानीय दैनिक अखबारों के साथ करियर की शुरुआत की। कई रीजनल, लोकल न्यूज चैनलों के बाद जागरण ग्रुप के नईदुनिया जबलपुर पहुंचे। इसके बाद अग्निबाण जबलपुर में बतौर समाचार सम्पादक कार्य किया। वर्तमान में द त्रिकाल डिजीटल मीडिया में बतौर समाचार सम्पादक सेवाएं जारी हैं।