जो बीता..सो बीता, नए रास्ते निकालें...नगीने तराशें, लाखों खिलाड़ियों में से सर्वश्रेष्ठ की चिंता करें 

Aug 15, 2024 - 16:17
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जो बीता..सो बीता, नए रास्ते निकालें...नगीने तराशें, लाखों खिलाड़ियों में से सर्वश्रेष्ठ की चिंता करें 

रवीन्द्र दुबे

अब यह तय हो गया है कि भारतीय महिला पहलवान को पदक नहीं मिलेगा। उनकी याचिका को रद्द  कर दिया गया है। पेरिस ओलम्पिक से पहले ही नियमों के तहत विनेश फोगाट को अयोग्य घोषित किया था। इसके बाद भी रजत पदक देने की अपील की गई। यह याचिका कोई नियम के तहत नहीं था सिर्फ दया याचिका की तरह थी। यदि भारत की अपील स्वीकार होती तो यह प्रचलन में आ जाता। फिर कोई न कोई बहाने से याचिका लगने का चलन शुरू हो जाता। 
वैसे भी यदि जब पहलवान विनेश का वजन ज्यादा निकला था तभी भारतीय दल के ऑफिशियल दल को समय दिलाने में मेहनत करनी थी। जो समय 10 मिनट का मिला था शायद वह बढ़ जाता। अब जो हुआ वो इतिहास बना गया है। विनेश फोगाट पहली भारतीय महिला बनी हैं जो फाइनल में पहुंची। साथ ही इस बात का भी जिक्र आएगा कि 100 ग्राम वजन बढ़ने के कारण उनको फाइनल खेलने नहीं मिला था।
जो बीत गया सो बीत गया...कहां अंबर शोक मनाता है। देश, खेल और खिलाडी को अगले ओलम्पिक यानी लास एंजिल्स 2029 की तैयारी में जुट जाना चाहिए। हर खेल में खिलाडी बचपन से ही तैयार करना चाहिए। खिलाडी बनाए जाते हैं, तराशे जाते हैं। खेल में रूचि होना खेलना अपनी जगह है लेकिन नेचुरल एबिलिटी प्राकृतिक योग्यता तलाशने की देर है। उसको मौका मिलने और राजनीतिक षड़यंत्र से बचाकर ऊपर लाने वाले की ईमानदारी की आवश्यकता है।
 हमको स्वीकार करना होगा, हम आज भी सीमित संसाधनों में काम चला रहे हैं। देश पहले आर्थिक तंग हाल था, यह भी पता है। 1992 के बाद उदारीकरण और वैश्विकरण के कारण परचेसिंग पॉवर आई, यह भी एक सच है। जो कुछ बदले-बदले हालत दिखते हैं, उसमें निजीकरण का बहुत बड़ा हाथ है। 1970-1990 के दशक तक खिलाड़ी स्कूल से निकलते थे, स्कूली प्रतियोगिता सशक्त थीं। लेकिन जैसे जैसे राजनीति ने पकड़ गहरी की खिलाड़ी षड्यंत्र के शिकार होते गए। खेल, खेल का मैदान रजनीति के अखाड़े बना दिए गए। यही भारतीय खेल के पतन का कारण है। अभी भी खेल में राजनीत के साथ षड्यंत्र हो रहे हैं। प्रतिभावान खिलाड़ी को वह स्थान नहीं मिल रहा है जो मिलना चाहिए। खिलाडी लाखों में हैं लेकिन सर्वश्रेठ कुछ सैकड़ा...सबको सर्वश्रेष्ठ में से बचे श्रेष्ठ के भविष्य की चिंता करनी चाहिए। उनके भविष्य और स्थिति को देखते हुए ही तो भविष्य के खिलाड़ी सर्वश्रेष्ठ देने की जी तोड़ मेहनत करेंगे।


भाग-4...पढ़ते रहिए...

Matloob Ansari मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर से ताल्लुक, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से पत्रकारिता की डिग्री बीजेसी (बैचलर ऑफ जर्नलिज्म) के बाद स्थानीय दैनिक अखबारों के साथ करियर की शुरुआत की। कई रीजनल, लोकल न्यूज चैनलों के बाद जागरण ग्रुप के नईदुनिया जबलपुर पहुंचे। इसके बाद अग्निबाण जबलपुर में बतौर समाचार सम्पादक कार्य किया। वर्तमान में द त्रिकाल डिजीटल मीडिया में बतौर समाचार सम्पादक सेवाएं जारी हैं।