शेषनाग गणेश मंदिर में भगवान गणेश ने विसर्जन से किया इंकार
हम सभी हर्षोल्लास के साथ बप्पा को घर लेकर आते हैं, उनकी स्थापना करते हैं। गणेश उत्सव ही एक ऐसा उत्सव है जिसमें घर से लेकर दुकानों और पंडालों में गणेश प्रतिमाओं को रखा जाता है।
हम सभी हर्षोल्लास के साथ बप्पा को घर लेकर आते हैं, उनकी स्थापना करते हैं। गणेश उत्सव ही एक ऐसा उत्सव है जिसमें घर से लेकर दुकानों और पंडालों में गणेश प्रतिमाओं को रखा जाता है। 10 दिनों तक उनकी धूमधाम से पूजा अर्चना की जाती है और अनंत चतुर्दशी के दिन गजानन की विदाई की जाती है, लेकिन कभी आपने यह सुना है कि बप्पा ने विसर्जन करने से ही मना कर दिया हो और सदैव के लिए गणेश प्रतिमा एक ही स्थान पर विराजमान रहे। नहीं न, लेकिन जबलपुर शहर में ऐसा हुआ है। जहां पर बप्पा ने भक्तों को अपना विसर्जन ही नहीं करने दिया। बप्पा ऐसे विराजे की वे भक्तों के ही होकर रह गए। जबलपुर के गंजीपुरा में स्थित शेषनाग गणेश मंदिर का इतिहास बेहद रोचक और भक्ति से सराबोर कर देने वाला है। जी हां इस मंदिर की खास बात यह है कि 27 साल पहले तक यह मंदिर महज एक गणेश पंडाल हुआ करता था। जहां पर यहां के व्यापारी संघ द्वारा गणेश प्रतिमा को स्थापित किया जाता था। इस पंडाल की खासियत थी कि यहां पर हमेशा से ही ईकोफ्रेंडली गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती थी। कभी यहां पर लड्डू के तो कभी फलों के गणेश भगवान को निर्मित किया जाता था, यह पंडाल 50 साल पुराना है, लेकिन अब यहां पर शेषनाग गणेश मंदिर का निर्माण हो गया है औेर इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ गई। माना जाता है कि यह चमत्कारी मंदिर है। जहां पर स्वयं भगवान गणेश विराजमान है।
नागपुर टेकड़ी से लाई गई मिट्टी से हुआ चमत्कार
50 साल पुराने इस गणेश पंडाल में हर साल अलग-अलग मूर्ति स्थापित की जाती थी, यह परंपरा 20-24 सालों तक जारी रही, लेकिन 27 साल पहले जब व्यापारी संघ के लोग नागपुर के प्रसिद्ध टेकड़ी गणेश मंदिर से प्रतिमा बनाने के लिए मिट्टी लेकर आए, उसी साल जब गणेश जी विसर्जन का दिन आया तो भक्त उनकी प्रतिमा को हिला भी न सके। उस मूर्ति को उठाने का सभी ने काफी प्रयास किया, लेकिन नतीजा यह रहा कि भगवान की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती। भगवान गणेश सदैव के लिए यहां रहना चाहते थे। भक्तों ने उनके इशारे को समझ लिया और फिर यहां पर मंदिर का निर्माण करा दिया गया। बप्पा की रक्षा के लिए शेषनाग को भी स्थापित किया। इस मंदिर में काफी पुराना बरगद का वृक्ष भी है। जिसके नीचे महादेव, मां दुर्गा भी विराजमान है। यहां पर साल भर भक्तों का आना जाना लगा रहता है, लेकिन गणेश उत्सव के दौरान यहां का नजारा देखते ही बनता है। यह लोगों के लिए आस्था का केन्द्र बन चुका है।