शिवरात्रि में भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में हुए प्रकट, माता पार्वती से किया विवाह
26 फरवरी को शिवरात्रि की धूम घर मंदिरों और पूरे देशभर में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंग में दिखाई देगी। शिवरात्रि एक ऐसा पर्व जिसमें भगवान भोलेनाथ माता पार्वती के हो गए। पहला प्रेम विवाह। शिवरात्रि शादी के लिए सबसे अच्छा मुहूर्त माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी जोड़े इस दिन विवाह बंधन में बंधते हैं। उनका आपसी प्रेम और शादी में भगवान शिव का आशीर्वाद बना रहता है।

26 फरवरी को शिवरात्रि की धूम घर मंदिरों और पूरे देशभर में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंग में दिखाई देगी। शिवरात्रि एक ऐसा पर्व जिसमें भगवान भोलेनाथ माता पार्वती के हो गए। पहला प्रेम विवाह। शिवरात्रि शादी के लिए सबसे अच्छा मुहूर्त माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी जोड़े इस दिन विवाह बंधन में बंधते हैं। उनका आपसी प्रेम और शादी में भगवान शिव का आशीर्वाद बना रहता है। शिवरात्रि सिर्फ इसलिए खास नहीं है कि इस दिन भगवान शिव का विवाह हुआ था, बल्कि इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन भगवान ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इस दिन व्रत करने और भोलेनाथ की पूजा विधि-विधान से करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और संपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति होती है।
शिवरात्रि पर करें शिवलिंग का अभिषेक
वैसे तो कहा जाता है कि भगवान शिव की कृपा सबसे जल्दी प्राप्त होती है। भगवान शिव को भोलेनाथ कहा जाता है। वे बहुत भोले हैं। उन्हें मनाने के लिए ज्यादा प्रयत्न नहीं करने होते। वे आसानी से अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा कर देते हैं। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। दूध, दही, शहद, गंगाजल, अष्टगंध आदि से उनका अभिषेक करना चाहिए। इस दिन भगवान शिव का संपूर्ण श्रृंगार करने का महत्व है। यही वजह है कि शिवरात्रि के दिन तमाम मंदिरों में सुबह से ही भक्तों का तांता लग जाता है। इसके साथ ही देर रात तक मंदिरों में भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का आयोजित किया जाता है।
भांग, धतूरा, बेलपत्र चढ़ाने का है अलग महत्व
भगवान शिव को भांग, धतूरा, आक और बेलपत्र अर्पित करने के पीछे एक पौराणिक कथा है। शिव महापुराण के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो सबसे पहले हलाहल नामक विष निकला। यह विष इतना विषैला था कि उसकी गर्मी से सम्पूर्ण सृष्टि जलने लगी। देवता और असुर दोनों ही इससे भयभीत हो गए और इसका नाश करने का कोई उपाय नहीं दिखा।
तब भगवान शिव ने समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए इस विष का पान कर लिया, लेकिन उन्होंने इसे अपने कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीलवर्ण हो गया और वे नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हो गए। इस विष के प्रभाव को संतुलित करने के लिए शिव को ठंडी चीजों की आवश्यकता महसूस हुई, और इस कारण भांग, धतूरा, आक और बेलपत्र जैसे शीतलता प्रदान करने वाले पदार्थों को शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है।