4 फरवरी को मनाया जाएगा मां नर्मदा का प्राकट्योत्सव
संस्कारधानी में मां नर्मदा की विशेष कृपा मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि मां नर्मदा कई युगों की साक्षी है। जिनका धार्मिक महत्व है। अमरकंटक से निकली मां नर्मदा को कई नामों से जाना जाता है। कहीं इन्हें मेकलसुता कहा जाता है, तो कहीं इन्हें मां रेवा कहा जाता है। मां नर्मदा के प्रति लोगों की आस्था अटूट है। जबलपुर शहर के लिए मां नर्मदा जीवनदायिनी की तरह है। मां नर्मदा का प्राकट्योत्सव 4 फरवरी को मनाया जा रहा है।

संस्कारधानी में मां नर्मदा की विशेष कृपा मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि मां नर्मदा कई युगों की साक्षी है। जिनका धार्मिक महत्व है। अमरकंटक से निकली मां नर्मदा को कई नामों से जाना जाता है। कहीं इन्हें मेकलसुता कहा जाता है, तो कहीं इन्हें मां रेवा कहा जाता है। मां नर्मदा के प्रति लोगों की आस्था अटूट है। जबलपुर शहर के लिए मां नर्मदा जीवनदायिनी की तरह है। मां नर्मदा का प्राकट्योत्सव 4 फरवरी को मनाया जा रहा है। माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां नर्मदा का प्राक्ट्योत्सव मनाया जाता है। आइए जानते हैं कि क्यों है मां नर्मदा इतनी खास और क्या है उनके प्राकट्योत्सव की कहानी-
पश्चिम दिशा में बहती है नर्मदा
ऐसा कहा जाता है कि मां नर्मदा का विवाह राजकुमार सोनभद्र के साथ होना तय हुआ। नर्मदा जी राजकुमार से मिलना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने अपनी दासी को राजकुमार के पास भेजा। यहां राजकुमार ने दासी को राजसी गहनों के साथ देखा तो उसे ही नर्मदा समझ कर विवाह कर लिया। जब दासी काफी देर तक वापस नहीं पहुंची। तब नर्मदा जी सोनभद्र के पास पहुंची और उन्होंने दासी और राजकुमार को साथ देखा तो वहां से रूठ कर निकल गई। इसलिए नर्मदा जी पश्चिम दिशा की ओर बहती हैं और अरब सागर में मिलती हैं।
अवतरण के लिए ये हैं प्रचलित कहानियां
स्कंद पुराण के अनुसार, राजा हिरण्य तेजा ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए चौदह हजार वर्षों तक कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने नर्मदा नदी को पृथ्वी पर अवतरित होने का वरदान दिया। शिव की आज्ञा से नर्मदा जी मगरमच्छ पर सवार होकर उदयाचल पर्वत पर अवतरित हुईं और पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होने लगीं।
एक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव तपस्या में लीन थे, तब उनके पसीने से एक दिव्य कन्या प्रकट हुई, जो अद्भुत सौंदर्य से युक्त थी। भगवान शिव और माता पार्वती ने उसका नाम नर्मदा रखा, क्योंकि उसने उनके मन को प्रसन्न किया था। नर्मदा का अर्थ है “सुख देने वाली।”
एक अन्य कथा में कहा गया है कि देवताओं और राक्षसों के बीच अनेक युद्ध हुए, जिनमें देवता भी पाप के भागी बन गए। इस संकट से मुक्ति पाने के लिए वे भगवान शिव के पास गए और समाधान मांगा। तब शिव ने देवताओं के पापों को धोने के लिए मां नर्मदा की उत्पत्ति की।