24 सितंबर को बरसेगी मां लक्ष्मी की विशेष कृपा
मां लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने के लिए महालक्ष्मी का व्रत रखा जाता है। इस को नियमों के साथ करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती है और सुख, समृद्धि प्रदान करती हैं।
महालक्ष्मी व्रत महिलाओं के लिए होता है बेहद खास
मां लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने के लिए महालक्ष्मी का व्रत रखा जाता है। इस को नियमों के साथ करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती है और सुख, समृद्धि प्रदान करती हैं। इस व्रत की शुरूआत भाद्र पद की अष्टमी तिथि से होती है। जिसका समापन अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता है। इस बार इस व्रत की शुरूआत 11 सितंबर से हुई है। जिसका समापन 24 सितंबर को मां लक्ष्मी की पूजा के साथ होगा। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को सुहागिन महिलाएं करती हैं। संतान सप्तमी के अगले दिन यानी अष्टमी से व्रत के नियम करने शुरू होते हैं। सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद कच्चा सूत लेकर उसमें हल्दी, कुमकुम लगाकर हर रोज एक-एक गांठ लगाई जाती है। 16 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में अंतिम दिन उसी धागे को मां लक्ष्मी को सर्पित कर महिलाएं उसे अपनी दाहिनी कलाई में बांधती हैं। महालक्ष्मी का व्रत पितृ पक्ष के दौरान ही होता है। इस वत का काफी महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को ससुराल में सास द्वारा ही रखवाया जाता है। जिसमें सास अपनी बहू को उपहार के साथ ही सुहाग का सामान, साड़ी देकर व्रत की शुरूआत करवाती है।
मिट्टी के हाथी की होती है पूजा
महालक्ष्मी व्रत में मां लक्ष्मी की उस तस्वीर को पूजा जाता है। जिसमें माता लक्ष्मी हाथी पर सवार होती है। इसके साथ ही इस दिन मिट्टी के हाथी को पूजा जाता है। हाथी इंद्र देवता का वाहन है। मिट्टी के ऐरावत की पूजा होती है। जिसे महिलाएं खूबसूरत अंदाज में सजाती हैं। सोलह श्रृंगार माता को चढ़ाया जाता है और महिलाएं भी पूरा श्रृंगार करके ही इस पूजा को करती हैं। कहते हैं कि इस दिन खरीदा गया सोना आठ गुना बढ़ता है। यानी की इस दिन सोना खरीदना शुभ माना जाता है। इस व्रत में महिलाएं अन्न ग्रहण नहीं करती हैं।
स्वयं इंद्र देव ने भेजा था ऐरावत
इस व्रत में ऐरावत के ऊपर मां लक्ष्मी की प्रतिमा को रखा जाता है। कहते हैं कि इस व्रत की कथा में उल्लेख हैं कि किस तरह से माता कुंती के महल में अर्जुन ने इंद्र देव के वाहन ऐरावत को स्वर्ग से बुलवाया पूजा करने के लिए। जिसके स्वागत में तरह-तरह के रंगों के चौक पूरे गए और कई पकवानों को खिलाकर हाथी का स्वागत किया गया था। पूजा के बाद अगले दिन हाथी को वापस स्वर्ग के लिए विदा किया गया था।