मसान की होली मनाने के लिए काशी पहुंचे नागा साधु
काशी जिसे विश्व में आध्यात्मिक और आस्था की राजधानी माना जाता है। कहते हैं यहां पर शिव रहते हैं। वैसे भगवान शिव हर जगह मौजूद हैं, लेकिन काशी वह स्थान हैं जहां पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत को छोड़कर आए थे। मान्यता है विवाह के बाद जब भगवान शिव मां पार्वती के साथ कैलाश पर रहने लगे। तब माता पार्वती ने अपने दिल की बात भोलेनाथ से कही और कैलाश छोड़ने की इच्छा जताई। तब भगवान भोलेनाथ काशी में आकर बस गए।

काशी जिसे विश्व में आध्यात्मिक और आस्था की राजधानी माना जाता है। कहते हैं यहां पर शिव रहते हैं। वैसे भगवान शिव हर जगह मौजूद हैं, लेकिन काशी वह स्थान हैं जहां पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत को छोड़कर आए थे। मान्यता है विवाह के बाद जब भगवान शिव मां पार्वती के साथ कैलाश पर रहने लगे। तब माता पार्वती ने अपने दिल की बात भोलेनाथ से कही और कैलाश छोड़ने की इच्छा जताई। तब भगवान भोलेनाथ काशी में आकर बस गए। यह नगरी भगवान शंकर के त्रिशूल पर टिकी है। इसलिए यह पृथ्वी से ऊपर है। यहां स्वयं भोलेनाथ रहते है। इसलिए इस नगरी का काफी महत्व है। यहां पर स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। इस पवित्र नगरी में प्राण त्यागने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मसान की होली होती है खास
आस्था की इस नगरी में मृत्यु का भी जश्न मनाया जाता है। गंगा किनारे बसे इस शहर में मोक्ष मिलता है। गंगा के घाटों में प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट एक ऐसा स्थान है जहां पर 24 घंटे चिताएं जलती हैं। सबसे बड़ी संख्या में यहां पर अघोरी और नागा साधु वास करते हैं। काशी में होने वाली मसान की होली काफी प्रसिद्ध है। फागुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के अगले दिन यहां पर चिताओं की राख से होली खेली जाती है। जिसमें हजारों नागा साधु और अघोरी साधक शामिल होते हैं।
आम तौर पर होली को रंगों का त्योहार माना जाता है, लेकिन मसान की होली जीवन और मृत्यु के फर्क को समझाती है। यह जश्न जीवन पर विजय पाने और मोक्ष पाने का जश्न है। जिसे हर कोई नहीं खेलता। मसान की होली खास तौर से भगवान शिव को समर्पित है। कहते हैं कि इस दिन भोलेनाथ का चिता की भस्म से अभिषेक किया जाता है। एक दिन पहले से ही चिता की राख को एकत्र किया जाता है और फिर मसान होली खेली जाती है। इस बार यह 10 मार्च को काशी में खेली जाएगी। यही कारण है कि महाकुंभ प्रयागराज से नागा साधु निकल कर काशी पहुंच चुके हैं। मसान होली की शुरूआत मणिकर्णिका घाट पर स्थित मसान मंदिर में आरती के साथ की जाती है। फिर कई हजारों डमरुओं की धुन पर चिता की राख एक-दूसरे को लगाई जाती है।
क्या है मसान की होली का इतिहास?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव माता पार्वती को गौना के बाद रंगभरी एकादशी के दिन काशी लेकर आ गए थे। यहां पर उन्होंने रंग, गुलाल के साथ गणों के साथ होली खेली थी, लेकिन शमशान में रहने वाले भूत, पिशाच, गंधर्व के साथ होली नहीं खेली। जिसके कारण रंगभरी एकादशी के अगले दिन भगवान शिव ने मसान की होली खेली। तब से लेकर आज तक हर वर्ष सबसे बड़े शमशाम मणिकर्णिका पर मसान की होली खेलने की परंपरा निभाई जा रही है। यह होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यह संदेश देती है कि शिव आदि से अनंत तक हैं। शिव ही अंतिम सत्य है।