अब छठ की तैयारी, कल से शुरू होंगे व्रत, 8 नवम्बर को होगा समापन
दीपावली के बाद अब छठ पर्व की धूम देखने को मिल रही है। बाजारों में छठ पूजा की सामग्री की दुकानें सज गई हैं। इसके साथ ही कपड़ों की दुकानों में दिवाली के बाद एक बार फिर से रौनक देखने को मिल रही है।
दीपावली के बाद अब छठ पर्व की धूम देखने को मिल रही है। बाजारों में छठ पूजा की सामग्री की दुकानें सज गई हैं। इसके साथ ही कपड़ों की दुकानों में दिवाली के बाद एक बार फिर से रौनक देखने को मिल रही है। क्या है छठ पूजा और इसे बिहार में दीपावली से भी अधिक महत्व क्यों दिया जाता है। आइए जानते हैं कि कौन है छठी मईया और इस पर्व को महिलाएं कैसे मनाती हैं।
सूर्य देव और छठी मईया को समर्पित-
घर के पुरुष सूर्य माने जाते हैं। जो भी महिलाएं हर रोज सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं। इससे उनका वैवाहिक जीवन में सुखमय गुजरता है। सूर्य देवता की उपासना करने से पति का मान सम्मान बढ़ता है। घर में सुख समृद्धि आती है। छठ पर्व सूर्य देव और उनकी बहन छठी मईया को समर्पित है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से इस व्रत की शुरूआत होती है। जिसका समापन सप्तमी की सुबह उगते सूरज को अर्घ्य देकर होता है। चार दिन पहले इस व्रत की शुरूआत नहाए खाए से होती है। विवाहित महिलाएं इस व्रत को करती हैं। इस व्रत की खास बात यह है कि इस व्रत की पूजा में पति भी खास तौर पर शामिल होते हैं। जिससे उनके जीवन में आने वाले संकट दूर हो जाते हैं। 5 नवंबर से छठ व्रत की शुरूआत हो रही हैं। जिसका समापन 8 नवंबर को होगा।
अनेक कथाएं प्रचलित-
छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब श्री कृष्ण द्वारा बताए जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है।
पर्व मनाने का वैज्ञानिक कारण-
सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है।
पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है।अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य जीवन को लाभ होता है।