सागर: नहीं रहे राई नर्तक रामसहाय पांडे, 97 वर्ष की आयु में निधन
बुंदेलखंड के renowned राई नर्तक रामसहाय पांडे का 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

बुंदेलखंड के renowned राई नर्तक रामसहाय पांडे का 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उन्होंने राई नृत्य को 24 देशों में पहचान दिलाई। उनका निधन सागर के एक निजी अस्पताल में हुआ, जहां वे लंबे समय से बीमार थे। उनके निधन पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने गहरा दुख व्यक्त किया है। रामसहाय पांडे ने 12 साल की उम्र से राई नृत्य की शुरुआत की थी और इसे दुनिया भर में प्रसिद्ध किया।
रामसहाय पांडे ने राई नृत्य को दुनिया भर में प्रसिद्ध किया। उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन 24 देशों में किया। 2022 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि यह मध्य प्रदेश के लिए एक बड़ी हानि है।
12 साल की उम्र से किया राई नृत्य
रामसहाय पांडे ने 12 साल की छोटी उम्र से ही राई नृत्य करना शुरू कर दिया था। बुंदेलखंड को पिछड़ा इलाका माना जाता था। इसलिए शुरुआत में इस नृत्य को ज्यादा पहचान नहीं मिली लेकिन रामसहाय पांडे ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी मेहनत से राई नृत्य को पूरी दुनिया में पहुंचाया।
रामसहाय पांडे का जन्म 11 मार्च 1933 को सागर जिले के मड़धार पठा गांव में हुआ था। बाद में वे कनेरादेव गांव में बस गए, जहां से उन्होंने राई नृत्य की शुरुआत की। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, "बुंदेलखंड के गौरव और लोकनृत्य राई को वैश्विक पहचान दिलाने वाले लोक कलाकार पद्मश्री श्री रामसहाय पांडे जी का निधन मध्य प्रदेश और कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। लोक कला और संस्कृति को समर्पित उनका जीवन हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा। परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे और उनके परिवार को इस गहरे दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें।"
रामसहाय पांडे कद में छोटे थे, लेकिन राई नृत्य में उनका कोई मुकाबला नहीं था। जब वे कमर में मृदंग बांधकर नृत्य करते थे, तो दर्शक आश्चर्यचकित रह जाते थे। उन्होंने जापान, हंगरी, फ्रांस, मॉरीशस जैसे कई प्रमुख देशों में राई नृत्य का प्रदर्शन किया। रामसहाय पांडे एक ब्राह्मण परिवार से थे, जहां राई नृत्य को उचित नहीं माना जाता था, क्योंकि इसमें महिलाओं के साथ नृत्य करना पड़ता था। जब उन्होंने राई नृत्य किया, तो उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया गया था। हालांकि, जब उन्होंने इस लोकनृत्य को गांव से बाहर निकालकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया, तो सब ने उनकी कला को स्वीकार किया। सरकार ने भी उनकी कला की सराहना की और उन्हें मध्य प्रदेश लोककला विभाग में स्थान दिया।
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