राम की चिड़िया राम का खेत, चुग लो चिड़िया भर पेट
रवींद्र दुबे
जबलपुर आने जाने वाली फ्लाइट लगातार बंद हो रहीं हैं। यह लोकसभा चुनाव घोषणा के पहले से हो रहा है। हवाई अड्डे पर नया भव्य भवन हाल ही में बना है लेकिन हवाई जाहज की कमी है। उससे आने जाने वाले परेशान हैं। जबलपुर के डुमना हवाई अड्डे का विस्तार देवेगौड़ा सरकार के समय से प्रस्तावित है। बनकर मिला कब 2024 में।
क्या यह मुद्दा चुनाव में सुनाई दिया...नहीं..? क्या यह मुद्दा मीडिया या नेताओं की प्राथमिकता में था....नहीं? क्या हम इस आधार पर वोट करते हैं..? नहीं....? सरकार वोट से बनती है...? सांसद विधायक वोट से चुनते हैं...। क्या वो हमारी आवाज उठाते हैं...? क्या उनमें वो साहस है...जो पार्टी लाइन के साथ अपनी सरकार के सामने जबलपुर की आवाज बुलंद कर सकें..? वे कुछ कर सकने में कितने सक्षम हैं...?
मेरा मानना है वे सदन में वजनदारी से आवाज नहीं उठाते अपितु अनुनय, विनम्र निवेदन और विषय विशेष का आग्रह करते हैं। इसकी वजह है जबलपुर के लोग पार्टी को वोट करते हैं,1951 से 1974 तक़ कांग्रेस और 1996 से आजतक भाजपा को चुनते हैं।
इस बीच के कार्यकाल में एक नेता हुए शरद यादव...जिनको जबलपुर की जनता ने नेता बनाया..वे जबलपुर की जनता का कर्ज जीवन भर चुकाते रहे। देश के 10 बड़े नेताओं की सूची में उनका नाम रहा। अब वे इस दुनिया में नहीं हैं।
क्या हम एक भी ऐसा जनप्रतिनिधि बना सके...नहीं। इसके क्या कारण रहे...सोचिए....?
ज़ब हम विचारधारा को चुनते हैं, तब हम एक तरह से बंध जाते है। हमारे सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है। हम सोचते कुछ हैं और है...वोट किसी और मुद्दे पर देते हैं। कथित पार्टी लाइन हमारे निर्वाचित जनप्रतिनिधि को पार्टी का बना देती है। नेता भी तो पार्टी लाइन को पसंद करता है क्योंकि उसको जिताने में उसकी भूमिका रहती है। लेकिन भविष्य का नेता कैसा होगा जनता के बीच कैसे काम करेगा यह तय भी तो पार्टी कर रही है।
मीडिया भी तो चुनाव के समय पार्टी पैकेज से बंध जाता। अब जनता की आवाज कौन बनेगा...पार्टी या नेता? जनता सवाल किससे करे...पार्टी या दल से...वो पार्टी कौन है.. एक संस्था जिसका प्रमुख, पदाधिकारी व कार्यकर्त्ता भी पार्टी लाइन से प्रतिबद्ध है। अत: हमारी आवाज भी पार्टी के लिए प्रतिबद्ध हो गईं है इसलिए अब चिल्लाए होत का ज़ब चिड़िया चुग गईं खेत...
राम की चिड़िया राम का खेत, चुग लो चिड़िया भर पेट...