धरती के भगवान तुम्हे सलाम, लेकिन...
शाबास डॉक्टर, डॉक्टर एसोसिएशन को साधुवाद। आप लोगों ने निर्भया कांड के बाद एक नई अलख जगाई है। देश में हर मिनट 16 और 24 घंटे में 90 बलात्कार के मामले संज्ञान में आ रहे हैं। लेकिन आप सब ने अपने पेशेगत ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार को मुद्दा बनाया।
रवीन्द्र दुबे
शाबास डॉक्टर, डॉक्टर एसोसिएशन को साधुवाद। आप लोगों ने निर्भया कांड के बाद एक नई अलख जगाई है। देश में हर मिनट 16 और 24 घंटे में 90 बलात्कार के मामले संज्ञान में आ रहे हैं। लेकिन आप सब ने अपने पेशेगत ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार को मुद्दा बनाया। अब यह राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है। निर्भया कांड के बाद भी कुछ कानून बने थे, क्या हुआ..? नारे और जुमले गढ़े गए...बहुत हुआ महिलाओं पर अत्याचार अबकी बार..? क्या हुआ जो हमारा अंधा समर्थन है...हम जात, धर्म, पेशा और विचारधारा देखकर अपनी आत्मा को जगाते हैं, फिर इसे सुला देते हैं। हमारी आत्मा मोमबत्ती जलाने तभी निकलती है, ज़ब हमारी विचारधारा के लोग नेतृत्व करते हैं।
-बहुत पुराना मामला नहीं है। याद करिए उस दिन को जब मणिपुर में 2 महिलाओं को नग्न कर उन्मादी भीड़ घेरे थी। बचने के लिए वह पुलिस के पास जाती हैं, लेकिन पुलिस भी महिला को भीड़ के हवाले कर देती है। दुनिया के सबसे दर्दनाक हादसे को सुना या पढ़ा नहीं है बल्कि इस देश के तमाम सोशल मीडिया देखने वालों ने देखा है। तब हम सब पढ़े-लिखे सो काल्ड व्हाइट कालर की आत्मा सोती रही। हम देखते रहे शायद सरकार कुछ करेगी, शायद कोर्ट भी कठोर आदेश देगा। लेकिन सबने बयान दिए सिर्फ धमकी दी। मीडिया भी मौन था क्यों..? क्योंकि वहां मन पसंद विचारधारा की सरकार है। न सीएम हटा, न ही सीबीआई जांच के आदेश हुए और न ही सरकार बर्खास्त हुई।
-इसी तरह विदेश से भारत भ्रमण पर आए सैलानी पति-पत्नी के साथ झारखण्ड में घटना होती है। वे दुनिया घूम आते हैं लेकिन भारत आते ही पति को बंधक बनाकर पत्नी से सामूहिक बलात्कार होता है। हम मौन रहते हैं, हमारी आत्मा सोती रहती है।
-भोपाल में एक स्कूल संचालक पर 8 साल की बच्ची के साथ बलात्कार करने का आरोप लगता है। बच्ची का स्पष्ट बयान है। आरोपी को पास्को एक्ट में जमानत मिल गई और हम मौन हैं...क्यों...? क्या सिर्फ केजरीवाल की जमानत रद्द कराने की जल्दबाजी जांच एजेंसिया दिखाएंगी। कठुआ, निठारी, बिल्किस बानो और भंवरी देवी कांड जैसे महिलाओं पर हुए बर्बरता के प्रकरण शर्मसार करते हैं। सूची बनाएंगे तो किताब लिखनी पड़ेगी।
-विचारधारा के गुलाम लोग उदाहरण गढ़ते हैं। वे घटना के बाद इंसान या इन्सानियत को नहीं देखते वह देखते हैं पीड़ित किस जात-धर्म का है। आरोपियों का धर्म क्या है..? इसलिए इस बार राज्य सरकार को कोसने के साथ उस सरकार को भी घेरें जो तीसरा टर्म पूरा करने जा रही है। उसने नारा ही दिया था बहुत हुआ महिलाओं पर अत्याचार अबकी बार मोदी सरकार। राजनीतिक विद्वेष के साथ राज्य पर कार्रवाई नहीं हो बल्कि जिम्मेदारी तो केंद्र की भी है।.
-क्या हुआ नागरिक सुरक्षा संहिता का, जो नागरिक सुरक्षा के लिए 1 जुलाई से लागू हुआ है। इसलिए सफ़ेद कोट पहने लोगों को देवतुल्य माना जाता है। आप जीवन देते हैं, अत: कुछ कराकर ही लौटना, शांत होना। मुददा बंगाल सरकार या ममता सरकार न होकर सही में महिला सुरक्षा का हो...आरोपी की जात या धर्म मत देखना। चाहे वह किसी भी राज्य की निवासी हो।
(द त्रिकाल मीडिया के सम्पादक रवीन्द्र दुबे की बेबाक टिप्पणी)