मुख्यमंत्री पद की चाहत ने हरियाणा में कांग्रेस की लुटिया डुबोई
हरियाणा विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से भाजपा सरकार की जीत हुई है और कांग्रेस पार्टी की हार हुई है । हरियाणा में कांग्रेस पार्टी के नेता आपस में ही सत्ता के लिए एक दुसरे के खिलाफ खड़े थे।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से भाजपा सरकार की जीत हुई है और कांग्रेस पार्टी की हार हुई है । हरियाणा में कांग्रेस पार्टी के नेता आपस में ही सत्ता के लिए एक दुसरे के खिलाफ खड़े थे। कांग्रेस के लगभग सभी बड़े नेता मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी-अपनी दावेदारी कर रहे थे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा इन दोनों के बीच की लड़ाई ने कांग्रेस पार्टी को हरियाणा में काफी नुकसान पहुँचाया। दोनों ने अपने-अपने गुटके लोगों को टिकट दिलवाकर पार्टी का नुकसान किया। कांग्रेस ने बाहर से यह छुपाने की कोशिश की कि हमारे बीच में कोई लड़ाई नहीं है, पर यह घटनाक्रम देखकर साफ़ हो चुका था कि लड़ाई है और इसका खामियाज़ा कांग्रेस को भुगतना पड़ा।
जाट वोट
कांग्रेस पार्टी के नेता रणदीप हुड्डा ने जाट वोटों की पर बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित किया जिससे गैर जाट वोट भाजपा की तरफ आकर्षित हुए। हमेशा से हरियाणा की राजनीती में जाटों का बहुत ज्यादा प्रभाव देखने को मिला जिससे गैर जाट वोटर्स में नाराज़गी बनी हुयी थी। उन्हें लग रहा था कि कांग्रेस के सत्ता में आने से हरियाणा में वापस से जाटों का दबदबा हो जाएगा।
चुनाव के पहले की भाजपा की तैयारियां
चुनावों से पहले भाजपा को अंदाज़ा लग गया था की लहर अभी हमारे पक्ष में नहीं है। इसीलिए भाजपा ने पहले ही जमीनी स्तर पर काम करना शुरू कर दिया। कांग्रेस पार्टी भी ओवर कॉन्फिडेंस में आ गई थी । भाजपा के कैबिनेट मंत्री एवं दिग्गज नेता धर्मेंद्र प्रधान ने हरियाणा चुनाव की कमान अपने हाथ में ली और बाज़ी पलट दी।
भाजपा का शहरी दबदबा
शहरी क्षेत्र जैसे कि गुरुग्राम, वल्लभगढ़ और फरीदाबाद में भाजपा का दबदबा हमेशा से बना आया है। इन क्षेत्रों में भाजपा लगभग अजेय मानी जाती है। यहां कांग्रेस ठोस बदलाव लाने में असफल रही। शहरी क्षेत्रों में ज्यादा पढ़ी लिखी और खुले दिमाग की आबादी रहती है, यहां पर पार्टी की पकड़ बनाने से पूरे राज्य में प्रभाव पड़ता है।