फिल्म नादानियां दर्शकों को आई पसंद, लेकिन खुशी कपूर की एक्टिंग में आत्मविश्वास की कमी
इतने सालों बाद, करण जौहर एक और अनोखे स्कूल की कहानी लेकर आए हैं, जहां डिबेट टीम का कैप्टन तर्क क्षमता से ज्यादा एब्स की बदौलत चुना जाता है। इस फिल्म का नाम है नादानियां, जिसे देखकर यही सवाल उठता है कि मेकर्स को ऐसी नादानियां सूझती कैसे हैं!

करीब 27 साल पहले, करण जौहर अपनी पहली फिल्म कुछ कुछ होता है लेकर आए थे, जिसमें भारतीय दर्शकों ने पहली बार एक ऐसे कॉलेज को देखा था जहां पढ़ाई से ज्यादा प्यार और फैशन पर चर्चा होती थी। तब हर कोई यही सोच रहा था कि आखिर यह कॉलेज है कहां, क्योंकि हमारे स्कूलों में तो प्रेमगीत गाने पर भी सज़ा मिल जाती थी।
अब, इतने सालों बाद, करण जौहर एक और अनोखे स्कूल की कहानी लेकर आए हैं, जहां डिबेट टीम का कैप्टन तर्क क्षमता से ज्यादा एब्स की बदौलत चुना जाता है। इस फिल्म का नाम है नादानियां, जिसे देखकर यही सवाल उठता है कि मेकर्स को ऐसी नादानियां सूझती कैसे हैं!
फिल्म की कहानी
कहानी दिल्ली के एक बेहद प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ने वाली पिया जय सिंह (खुशी कपूर) की है, जो आर्थिक रूप से तो समृद्ध है, लेकिन रिश्तों के मामले में उतनी भाग्यशाली नहीं रही। उसने अपने माता-पिता—नीलू (महिमा चौधरी) और रजत (सुनील शेट्टी)—के बीच बढ़ती दूरियां और पारिवारिक पुरुषसत्तात्मक सोच को करीब से देखा है, जहां बेटे को ही असली वारिस समझा जाता है।
इस सबके बीच, एक गलतफहमी के चलते जब उसकी सबसे करीबी सहेलियां उससे नाराज़ हो जाती हैं, तो उन्हें मनाने के लिए पिया एक नकली बॉयफ्रेंड होने का नाटक करती है। इसका मकसद सिर्फ यह साबित करना होता है कि उसका अपनी ही बीएफएफ के क्रश के साथ कोई अफेयर नहीं चल रहा।
कहानी आगे बढ़ती है, जहां दिल्ली के अमीरजादों के लिए बने इस खास स्कूल में एंट्री होती है कुक्कड़ कमाल दा अर्जुन मेहता (इब्राहिम अली खान) की। डॉक्टर और टीचर माता-पिता (जुगल हंसराज और दिया मिर्जा) के इस होनहार बेटे को स्कूल का टॉपर, स्विमिंग चैंपियन और जबरदस्त एब्स वाला बताया जाता है। उसकी नजरें अपने लक्ष्यों पर टिकी हैं, लेकिन जब पिया उसे 25 हजार रुपये प्रति हफ्ते की पेशकश करती है, तो वह उसका नकली बॉयफ्रेंड बनने के लिए तैयार हो जाता है। अब यह दिखावे का रिश्ता आगे क्या मोड़ लेता है, यह जानने के लिए फिल्म देखनी होगी।
'नादानियां' मूवी रिव्यू
नई निर्देशिका शौना गौतम और लेखकों की तिकड़ी—रीवा राजदान कपूर, जेहान हांडा और इशिता मोइत्रा—ने इसे अमेरिकन टीनएज रोमांटिक-कॉमेडी जैसी फिल्म बनाने की कोशिश की है। लेकिन इसमें हॉलीवुड हाईस्कूल रोमांस, करण जौहर की कुछ कुछ होता है और अनन्या पांडे की कॉल मी बे के तत्वों को जोड़ते-जोड़ते यह एक पैबंद लगे पजामे जैसी फिल्म बन गई है, जिसमें कोई नयापन नहीं दिखता। यहां तक कि कुछ कुछ होता है की ब्रिगैंजा मैडम (अर्चना पूरण सिंह) भी जब जेन Z लिंगो वाले जोक्स सुनाती हैं, तो वे भी फीके लगते हैं।
फिल्म में कुछ राहत अर्जुन और पिया के पैरेंट्स के ट्रैक से मिलती है, लेकिन अर्जुन-पिया की मुलाकात, अलगाव और पुनर्मिलन वाली यह कहानी इस दौर के कोरियन ड्रामा की तुलना में काफी कमजोर लगती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है खुशी कपूर और इब्राहिम अली खान के बीच केमिस्ट्री की कमी और उनकी कमजोर अदाकारी।
खुशी कपूर की यह तीसरी फिल्म है, लेकिन उनकी एक्टिंग में अब भी आत्मविश्वास की कमी झलकती है। उन्हें और मेहनत करने की जरूरत है। वहीं, डेब्यू कर रहे इब्राहिम अली खान स्क्रीन पर आकर्षक दिखते हैं और उनकी प्रेजेंस अच्छी है, लेकिन एक्सप्रेशन और डायलॉग डिलीवरी पर उन्हें और काम करने की जरूरत है।
हालांकि, दीया मिर्जा, जुगल हंसराज, सुनील शेट्टी और महिमा चौधरी जैसे अनुभवी कलाकारों ने अपनी सधी हुई एक्टिंग से नए कलाकारों को अच्छा सपोर्ट दिया है।
फिल्म के संगीत की बात करें तो 'तेरे इश्क में' एक खूबसूरत गाना बनकर उभरा है। और हां, फिल्म की एक सबसे अच्छी बात यह है कि यह जल्दी खत्म हो जाती है!