जिसे पत्नी जैसा रखा उसका हक भी पत्नी जैसा, लिव-इन रिलेशनशिप के मामले में हाईकोर्ट का अहम फैसला, विवाह न होना अधिकार देने से बचने का तर्क नहीं

कोई भी व्यक्ति यदि किसी महिला को पत्नी जैसा रखता है तो उस महिला के अधिकार भी पत्नी वाले ही होंगे। विवाह न होना महिला को राहत देने से बचने का ठोस तर्क नहीं माना जा सकता।  ऐसी स्थिति में महिला को गुजारा-भत्ता देना ही होगा।

Apr 8, 2024 - 16:33
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जिसे पत्नी जैसा रखा उसका हक भी पत्नी जैसा, लिव-इन रिलेशनशिप के मामले में हाईकोर्ट का अहम फैसला, विवाह न होना अधिकार देने से बचने का तर्क नहीं
The rights of the one who is treated like a wife are also like those of a wife, important decision of the High Court in the matter of live-in relationship, absence of marriage is not an argument to avoid giving rights.

कोई भी व्यक्ति यदि किसी महिला को पत्नी जैसा रखता है तो उस महिला के अधिकार भी पत्नी वाले ही होंगे। विवाह न होना महिला को राहत देने से बचने का ठोस तर्क नहीं माना जा सकता।  ऐसी स्थिति में महिला को गुजारा-भत्ता देना ही होगा। यह अहम फैसला सुनाया हैं मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने। हाईकोर्ट ने जिला कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए आदेश दिए कि महिला गुजारे-भत्ते के लिए पात्र हैं, और जीवन निर्वहन के लिए वह इसकी हकदार भी हैं। हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को कई तर्क भी दिए पर सब खारिज हो गये।

-डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से हार गयी थी महिला

बालाघाट में रहने वाले शैलेश कुमार कई सालों तक एक महिला के साथ लिव इन रिलेशन में रहा। दोनों का एक बच्चा भी हैं। किसी कारणवश दोनों अलग हो गए तो महिला ने बालाघाट पुलिस में शिकायत की और बताया कि शादी का झांसा देकर पत्नी की तरह रखा। महिला ने बालाघाट जिला कोर्ट में गुजारे-भत्ते के लिए आवेदन किया। महिला ने कोर्ट को बताया कि कई सालों तक पति-पत्नी की तरह रहें, उनका एक बच्चा भी हैं। बाद में शादी से इंकार कर दिया, लिहाजा उसे जीवन-यापन के लिए गुजारा भत्ता दिए जाए। बालाघाट जिला कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया तो शैलेश ने हाईकोर्ट में बालाघाट कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि कोर्ट के समक्ष महिला ने मंदिर में शादी किए जाने और पत्नी के तौर रहने की बात कही है लेकिन वह इसके साक्ष्य कोर्ट में पेश नहीं कर पाई है इसलिए याचिकाकर्ता को राहत मिलनी चाहिए।

-दोनों का बच्चा भी है

मामला लिव इन रिलेशन से जुड़ा हुआ था और महिला का एक बच्चा भी है। लिहाजा हाई कोर्ट ने इस पर निर्णय फैसला सुनाते हुए कहा कि भले ही महिला विवाह साबित करने में सफल न रही हो लेकिन दोनों के बीच संबंध थे यह सबूत पर्याप्त है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चा इस बात का सबूत है कि दोनों के बीच रिश्ते पति-पत्नी जैसे ही थे। हाई कोर्ट जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने बालाघाट जिला न्यायालय के गुजारा भत्ता दी जाने के पारित आदेश की पुष्टि करते हुए चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है।

-नजीर बनेगा ये निर्णय

लिव इन रिलेशनशिप को लेकर देश भर की कोर्ट और कई मंचों पर महिलाओं के अधिकारों को लेकर प्रकरण लंबित है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के इस फैसले से लिविंग रिलेशन में महिलाओं के अधिकारों को मान्यता मिली है। बहरहाल हाई कोर्ट ने लिविंग रिलेशनशिप से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए एक हम आदेश पारित किया है जिसमें कहा है कि ब्रेकअप के बाद महिला गुजारा-भत्ता की हकदार है, भले ही उसका वैवाहिक वैधानिक तरीके से होने का साक्ष्य मौजूद न हो।