गुरू पूर्णिमा में क्यों याद आते हैं रजनीश और मग्गा बाबा

Jul 21, 2024 - 17:11
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गुरू पूर्णिमा में क्यों याद आते हैं रजनीश और मग्गा बाबा


पंकज स्वामी, जबलपुर

गुरू पूर्णिमा को पूरे विश्व में रजनीश (ओशो) के भक्त व अनुयायी उन्हें याद करेंगे। जब ओशो अपने भौतिक शरीर में थे तो यह गुरु पूर्णिमा उत्सव दुनिया भर के ओशो शिष्यों द्वारा विशेष रूप से मनाया जाता था और यह परंपरा अभी भी जारी है। ओशो 1990 में भौतिक शरीर छोड़ गए लेकिन उनके निधन के 33 साल बाद भी शिष्य व भक्त उन्हें गुरू पूर्णिमा के दिन महसूस कर सकते हैं। शिष्य व भक्त इस दिन ओशो की ऊर्जा और ध्यान से भरे हुए होते हैं। गुरू पूर्णिमा के दिन रजनीश के शिष्य व भक्त उनका स्मरण करते हैं। क्या रजनीश को किसी ने जीवन में नई दिशा दी? क्या रजनीश किसी से प्रभावित हुए? यहां इन प्रश्नों का उत्तर है। जबलपुर में मग्गा बाबा ने रजनीश को नई दिशा दी और रजनीश बाबा से प्रभावित हुए।
कौन थे मग्गा बाबा- 
मग्गा बाबा जबलपुर के स्थायी वाशिन्दे नहीं थे। वे जबलपुर में 10-15 साल तक रहे और शहर की सड़कों में घूमते रहे। बाबा हाथ में एक डिब्बा थामे रहते थे। यह डिब्बा मग की भांति था। उनका असली नाम कोई नहीं जानता था। हाथ में मग थामे रखने से लोग उन्हें मग्गा बाबा के नाम से पुकारने लगे थे। जब भी कोई उनका नाम पूछता तो वे मग चमका देते थे। उस समय जबलपुर में लोग मग्गा बाबा को घेरे रखते थे। हद तो यह हो जाती थी कि लोग अपने स्वार्थ में मग्गा बाबा को सोने तक नहीं देते थे। बताया जाता है कि मग्गा बाबा निवाड़गंज में किराना बाजार की दुकानों के छप्पर पर सोते थे। बाबा जब आराम की मुद्रा में नीम के पेड़ के नीचे होते तब असंख्य महिला पुरूष उनके हाथ पैर दबाते और मालिश करते। रिक्शे वालों में उन्हें सड़क पर घुमाने की होड़ लगी रहती थी। बाबा के लब पर चार-चार बीड़ी खुसी हुई रहती थी। कई बार लोग उनसे बात करने की कोश?िश करते वे मौन हो जाते या कुछ अज़ीब भाषा में बोलते जिसे लोग उनकी बातों को समझ ही नहीं पाते थे। वे भाषा का प्रयोग बिल्कुल नहीं करते थे। बाबा सिर्फ आवाज लगाते थे। उदाहरण के लिए-हिग्गलाल हू हू हू गुल्लू हिग्गा ही ही। फिर वह प्रतीक्षा करते और फिर पूछते-ही ही ही? तब लोगों को ऐसा महसूस होता जैसे वे पूछ रहे हैं- क्या आप समझ गए? और लोग कहते-और हाँ, बाबा, हाँ। बाबा अपने मग्गे में जो मिलता जाता उसे सान कर खा लेते थे। बाबा को बिना मांगे लोग इकन्नी, दुअन्नी, पांच व दस पैसे देते थे। बाबा इनको हथेली में एक के ऊपर एक रखते और जो चिल्लर सरक जाती उसे वे हवा में उछाल दिया करते थे।
मग्गा बाबा ने सिर्फ एक बार बातचीत में क्या कहा था रजनीश से-मग्गा बाबा ने केवल एक बार रजनीश से बात की थी। यह बात उस समय की गई थी जब वे रजनीश से बात तो करना चाहते थे लेकिन कुछ लोग नहीं चाहते थे कि मग्गा बाबा व रजनीश के बीच में कोई बातचीत हो। जबलपुर में कई बार ऐसा भी हुआ कि भीड़ का एक समूह ने मग्गा बाबा को जबर्दस्ती अगवा कर अपने साथ ले जाता था। एक दिन में उनके न दिखने पर दूसरा समूह बाबा को दूंढ़ कर सामने ला देता था। लेकिन एक बार मग्गा बाबा जो गायब हुए उसके बाद जबलपुर में कभी नहीं दिखे। मग्गा बाबा ने गायब होने से पहले एक रात पूर्व रजनीश से कहा था- 'Óहो सकता है कि मैं आपको एक फूल के रूप में विकसित न देख सकूं, लेकिन मेरा आशीर्वाद आपके साथ रहेगा। यह संभव है कि मैं वापस नहीं आ पाऊंगा। मैं हिमालय की यात्रा की योजना बना रहा हूं। मेरे ठिकाने के बारे में किसी को कुछ मत बताना। रजनीश ने कहा था कि जब उन्होंने मुझे यह बात बताई तो वे बहुत खुश थे। रजनीश स्वयं भी प्रसन्न हुए कि मग्गा बाबा हिमालय की ओर जा रहे हैं। मग्गा बाबा ने रजनीश को बताया कि हिमालय उनका घर है। रजनीश ने मग्गा बाबा को जीसस, बुद्ध, लाओत्से की श्रेणी में रखा था।

रजनीश उनके आशीर्वाद किस रूप में देखते हैं

रजनीश ने कहा कि मग्गा बाबा नि:संदेह मौन की भाषा सबसे अधिक जानते थे। वह लगभग जीवन भर चुप रहे। दिन में वह किसी से बात नहीं करता थे, लेकिन रात में वह मुझसे तभी बात करते थे जब मैं अकेला होता था। उनके कुछ शब्द सुनना एक ऐसा आशीर्वाद था जिसे व्यक्त करना मुश्किल है। मग्गा बाबा ने अपने जीवन के बारे में कभी कुछ नहीं कहा, लेकिन उन्होंने जीवन के बारे में बहुत कुछ कहा। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने रजनीश से कहा-जीवन जितना दिखता है उससे कहीं अधिक है। उसके रूप को देखकर न्याय न करो, परन्तु उन घाटियों की गहराई में उतरो, जहां जीवन की जड़ें हैं।'Ó मग्गा बाबा अचानक बोलते और अचानक वह चुप हो जाते थे। वह उनका तरीका था। उन्हें बोलने के लिए राजी करने का कोई उपाय नहीं था। रजनीश ने कहा कि वह किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं देते थे और हम दोनों के बीच की बातचीत एक परम रहस्य थी। इसके बारे में किसी को पता नहीं था। रजनीश को मग्गा बाबा के एक एक शब्द शुद्ध शहद की तरह लगते थे इतने मीठे और अर्थ से भरे हुए। रजनीश ने कहा था कि मुझे कई अजीबोगरीब लोगों से प्यार करने का सौभाग्य मिला है। मग्गा बाबा मेरी लिस्ट में पहले नंबर पर हैं।

रजनीश मग्गा बाबा से कब मिलते थे

रजनीश मग्गा बाबा के पास रात के अंधेरे में जाते थे। समय होता था रात के दो बजे। जाड़े की रात में आग के पास वे अपने पुराने कम्बल में लिपटे रहते। रजनीश थोड़ी देर उनके पास बैठ जाते। रजनीश कहते थे कि उन्होंने मग्गा बाबा को कभी परेशान नहीं किया। यही एक कारण था कि मग्गा बाबा रजनीश को बहुत प्यार करते थे।  बीच-बीच में ऐसा होता कि वे करवट बदलते, आंखें खोलकर रजनीश को वहां बैठा देखते और अपनी मर्जी से बातें करने लगते।

मग्गा बाबा ने रजनीश को क्या चेतावनी दी थी

1981 और 1984 के बीच ओरेगॉन में ओशो ने 1.315 दिनों तक मौन की एक समान अवधि देखी, जो उनके ज्ञानोदय के बाद की अवधि में मौन दिनों की संख्या के समान थी। ओशो ने संकेत दिया है कि जबकि मग्गा बाबा ने वास्तव में उन्हें पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया, साथ ही उन्होंने ओशो को चेतावनी दी कि वे अपने ज्ञान की घोषणा न करें क्योंकि इससे उनके श्रोताओं के बीच विरोध पैदा होगा। ओशो ने सार्वजनिक रूप से अपने ज्ञान को तब तक स्वीकार नहीं किया जब तक उन्होंने नवंबर 1972 में क्रांति को नहीं बताया। एक साल से अधिक समय के बाद जब उन्होंने अपना नाम भगवान श्री रजनीश में बदल लिया था और अपनी कठिन और कभी-कभी जीवन को खतरे में डालने वाली यात्राओं को रोक दिया था।

Matloob Ansari मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर से ताल्लुक, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से पत्रकारिता की डिग्री बीजेसी (बैचलर ऑफ जर्नलिज्म) के बाद स्थानीय दैनिक अखबारों के साथ करियर की शुरुआत की। कई रीजनल, लोकल न्यूज चैनलों के बाद जागरण ग्रुप के नईदुनिया जबलपुर पहुंचे। इसके बाद अग्निबाण जबलपुर में बतौर समाचार सम्पादक कार्य किया। वर्तमान में द त्रिकाल डिजीटल मीडिया में बतौर समाचार सम्पादक सेवाएं जारी हैं।