हम तुम और समरसता का ढोंग

द वायर की पत्रकार सुकन्या शांता की रिपोर्ट ने सामाजिक समरसता के दावों की पोल खोल दी है। समाज आज भी मनु स्मृति काल में है।

Oct 4, 2024 - 15:47
Oct 4, 2024 - 15:58
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हम तुम और समरसता का ढोंग
You and me and the pretense of harmony

रवीन्द्र दुबे

द वायर की पत्रकार सुकन्या शांता की रिपोर्ट ने सामाजिक समरसता के दावों की पोल खोल दी है। समाज आज भी मनु स्मृति काल में है। कुछ दिन पहले ओबीसी महासभा के संस्थापक संरक्षक वैभव सिंह के साथ गढ़ाकोटा गए थे। पालिका बाजार परिसर में चाय पीते-पीते एक डिस्प्ले बोर्ड पर नजर गई जिसमें सफाई कर्मचारी के नाम और मोबाइल नंबर दिए थे। उसको देखकर वैभव सिंह ने क्लिक कर दिया। हम तो समझ गए क्लिक क्यों हुआ। फिर भी पूछ लिया, क्या खास देखा..? उत्तर मिला तीनों बाल्मीकि हैं...। बस यहीं से चर्चा शुरू हो गई...। शायद हम दुबे हैं इसलिए पहले हिचक थी लेकिन बात निकली तो दूर तलक चली गई। सवाल-जवाब का दौर पूरे रास्ते चला....

समरसता का ढोंग क्या समाज में बदलाव ला सकता है? क्या आरक्षण के विरोधी यह मंजूर करेंगे कि सफाई कर्मी कि भर्ती में भी 50 प्रतिशत आरक्षण हो...? ज़ब सूची लगे तो उसमे भी वामन बानिया ठाकुर और अन्य स्वर्ण के नाम दिखें...। इससे पहले भी अनेक बार मैंने अपने विचार व्यक्त किए हैं। सामाजिक समरसता के नाम पर खाना खाना पैर धोने से क्या होगा..?  

जब तक हम जात के आधार पर कर्म तय करते रहेंगे तब तक समाज में बदलाव नामुमकिन है...बस वोट की फसल काटने के प्रयास होंगे तब तक समाज में अगड़ा पिछड़ा या अछूत रहेगा। शाबास पत्रकार सुकन्या शांता 

@SuknyaShanta 

सुप्रीम कोर्ट को साधुवाद...।